आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक चिंतन | Aadhunik Bharatiya Samajika Evam Rajanitika Chintan
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
759
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वरूप, भ्रध्ययन-क्षेत्र, महत्व एवं पाइचात्य प्रभाव 5
लगान की मनमानी वसुली ने ग्रामीण जनताको ब्राथिक ष्टि से विपन्न बना दिया ।
इन कारणों से भारतीय झाधिक चिंतन के क्षेत्र में नवीन दृष्टि उत्पन्न हुई । महादेव गोविंद
'रानाडे ने भ्रपने श्राधिक निबंधो में इसीलिए मुक्त-व्यापार की भरसंना की थी ।
इतना ही नहीं, भारत में अंग्रेज़ी सत्ता ने भारतीयों के धर्म, संस्कृति एवं
सामाजिक व्यवहार को भी नकारा । भंग्रे्ो शासन मे विदेशी ईसाई भिशनयियोंकी क्न
झायी । वे खुले रूप में हिंदू-सुस्लिम धर्मों की भत्संना करने लगे । उन्होंने दलित एवं
शोपित वगें को ईसाई धर्म में परिवतित करने का कार्यक्रम बनाया । ईसाई धर्म की
ध्राइ़ में मिशनरियों ने लेखन तथा शिक्षण संस्थानों के माध्यम से भारत में अंग्रेजी राज
को ईश्वरीय वरदान एवं विधान के रूप में सिद्ध करने का प्रयास किया । उनके इस
व्यवहार से भारतीयों के मन में अंग्रेज़ी शासकों के प्रति घृणा श्रीर बढ़ी 1? ऐसे समय में
स्वामी दयानंद सरस्वती ने भ्राय॑ समाज सम्बद्ध कार्य एवं विचारों द्वारा मिशनरियों के
कुटिल' कार्यों का सामना किया । लाला लाजपतराय ने भी ध्रार्य समाज के माध्यम से
भारत की गरिमा को भ्रक्षुण्ण रखने के लिए प्रभावोत्पादक विचार प्रस्तुत किये ।
उदारवादियों में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा गोपाल कृष्ण गोखले ने राजनीतिक कायेक्रमौ
द्वारा, भारतीय प्रशासनिक सेवा एवं श्रन्य श्रसनिक एवं सैनिक उच्च पदों से भारतीयों की
श्रलग रने की नीति, का घोर विरोध किया।
पत्रकारिता के विकास से भी आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक
चिंतन को पर्याप्त संबल मिला । सन् 1875 में भारत में 374 देशी श्रखबार निकलते
थे, जबकि भंप्रेज़ी भाषा में केवल 147 हो थे ।? देशी श्खदारों का विरोध भंग्रेजी
शासन के प्रति अधिक तीव्र था, जबकि अंग्रेजी अखबार श्रधिकतर सौम्य यथे। लाडं लिटन
के विरोधी रवेये के बावजूद यह क्रम लाडं रिपन के समय पुन: प्रारंभ हो गया ! बंगाल,
बंबई, मद्रास, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश पश्रका रिता के क्षेत्र में भ्रप्रणी थे । प्रेस की स्वतंत्रता
ने भारत में राष्ट्रवादी प्रकाशनों का झम्बार लगा दिया । सील की खेती में लगे श्रमिकों
की दु्देशा अंतत: अंग्रेजी सरकार विरोधी गांधी-सत्याग्रह में परिणत हुई । गांधी जी ने
यह सत्यागहू चंपारन में सन् 1917 में प्रारम्भ किया ।
भारतीयों के राजनीतिक संगठनों जेस पूना-सावंजतिक सभा (1870), इंडियन
एसोसियेशन (1876), मद्रास-महाजन-सभा (1884) तथा सुरेन्धेनाय बनर्जी दारा
संगठित नेशनल कान्फररेस (1883) ने ही अंततः भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस (1885) का
मागें प्रशस्त किया था । राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से श्राधुनिक भारतीय विचारकों को
एक सभा-स्थल प्राप्त हुमा । कांग्रेस के क्रियाकलापों में भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक
चितन का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है । इसलिए यह कहना भतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सतु 1885 से सन् 1947 तक श्राघुनिक भारतीय चितन को
देख रही है । ॥
भारतीय गाष्टरीय कामस ने प्रारभ मे अंमेजो शासन कै प्रति भारतीयों की प्रतिक्रिया
र्मकता को सहानुभूति में परिवर्तित करने का प्रयास किया था । इसीलिए कांग्रेस के
प्रारंभिक सदस्यों ने उदारवादी दृष्टिकोण श्रपनाया । इन्होंने अंग्रेजों शासन का श्रस्तित्व
स्वीकार कर लिया । फलत: सरकारी नौकरियों में श्रवस के विस्तार तथा अन्य
प्रताप्तनिक एवं न्यायिक सुधारो कौ याचना का युग प्रारंभ हुआ । भारतीय राष्ट्रवाद
जिसने झाधुनिक भारतीय चितत को वास्तविक झाधार प्रस्तुत फिया था, इस कामें
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