आज की कविता | Aaj Ki Kavita

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Aaj Ki Kavita by प्रभात मित्तल - Prabhat Mittal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हाल चाल कंसे हो भाई तुम जीवन दास ? आते-जाते यहाँ-वहाँ रोज़ दिख जात हो कमे हो, कुशल मगल राजी-खुशी तो है ? कसी है राजी वी खासी मगल के लक्वेमे क्यातरक्कीदै? सब ठीव-ठाक तो है ? बसी है तुम्हारी धुआँ देती आग उगलती बीवी वितना आँसू ढरवाती है वित्तने दिन से बीमार है चूल्हा रास कहाँ नही है. जीवन दास बिसवी सास मे मोर्चा खाई वबरछुल नहीं वजती विसकी नीद सम रोटी बिना वेले नही रह जाती भाई जीवन दास जीवन ही एेसा है घर भिरस्यी वा मुभे मालूम है तुम कहोगे--सब ठीव-ठाव है. चल रही है गाडी लेकिन तुम्हारी हेती तुम्हारी खडखडिया साइकिल को




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