आश्रम की बहनों को बापु के पत्र १ | Aashram Ki Bahno Ko Bapu Ke Patra-i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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काका कालेलकर - Kaka Kalelkar
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रामनारायण चौधरी - Ramnarayan Chaudhry
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बात नहीं । जिसके लिखें जोड़, बाकी, गुणाकार और भागाकार
तकका गणित आना चाहिये ।
अुसके बाद आती है अुद्योगमंदिरकी शिक्षा । जिस
शिक्षामें बहुत-सी बातें आ जाती हें । हमें धीरे-धीरे किसान,
जुलाहे, भंगी और ग्वाले बनना है । पाखाने साफ करनेकी
साधना भी राष्ट्रीय शिक्षाका महत्त्वपुर्ण अंग है। हमारे लिखें
और बच्चोंके लिजे जब तक दूधकी जरूरत रहेगी, तब तक
गोशालाकी चिन्ता भी रखनी ही पड़ेगी ।
भिस प्रकार अन्होंने शिक्षाके आवश्यक अंग स्त्रियोंके सामने
रखे हे । मगर बापूजीका खास आग्रह यह है कि सच्ची
शिक्षा -- भुक्तम तारीम--हृदयकी ही है । जिसके किं
पहली बात निभेयताकी है । जन्म-मृत्युका हषं-रोक छोड देना
चाहिये । अगर जीना अच्छा रूगता है, तो मूत्युके बाद जन्म
आयेगा ही । ओौर जन्म नहीं चाहो, तौ जिस लोकमें ही
मोक्षकी साधना की जा सकती है । जिसलिजे दोनों तरहसे
मृत्युका डर निकाल ही देना चाहिये ।
पुरुषके बिना हम असहाय हैं, अनाथ हें, यह खयाल सबसे
पहले निकाल देना चाहियें। जिसलिओे गहने और श्पंगार दोनों
छोड़ देने चाहिये । सच्चा सौन्दर्य हृदयमें है, अुसीका हमें विकास
करना चाहिये । रूप बनाना और गहने पहनना सब' विकार
बढ़ानेके लिअे है । विकारी न होनेका नाम ही ब्रह्मचयं है ।
वह् सध जाय तो भिसी जन्ममें मुक्ति है | विक्रार मिट जाय,
तो रोग. भी सिट जाय । हमें जो जवानी मिली है, वह विकारोंकों
पोषण देनेके लिमे नहीं, बल्कि भुन्हें जीतनेके लिखे है। कला
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