चाँद सूरज के बीरन आत्मकथा | Chand Suraj Ke Biran Atmakatha

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Book Image : चाँद सूरज के बीरन आत्मकथा  - Chand Suraj Ke Biran Atmakatha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आ्राक के फूल, घतुरे के फूल सूप री णिदारी में थे स्पृतियाँ झाव मी बन्द पड़ी हैं । पिटारी का दरना उठाया नहीं कि पुरानी स्मृतियाँ बाग उर्टी । शायर इनका कोइ कम नहीं, शायद इनका कोइ झर्य नहीं, ये स्मठियाँ पिटारी से सिर निकाल छ वार की हवा खाना प्वाती रै, षार फी मल देखना पाइती हैं । घर में एक दुलइन श्राइ हे। रिश्ते में वालक की 'वाची है । माँ कइती है, “पद तेरी मौसी रै }› वावी- मौसी, मौसी--चापी | बालक श्म सम्‌ ओ यह पात नहीं प्रासी । दुलएन तो दुलहन रे । शायः पालक इतना मी नहीं सममता । बह दुलइन के पास से हिलता ही नहीं । माँ घूरती है । भ्रष स्यों घूरती हे माँ ! बालक कुछ नहीं समम क्ता । मौ सिलसिला कर इंस पड़ती दे वदद 'चाइठी हे कि बालक उसका झचल पकड़ कर मी उसी तरइ चले जिस तरह बद्द श्पनी मौसी श्न श्रचल पड फर चलता रै । वालक यष नरी मरू सक्सा । दुलहन मीवर वाती शै बर्ह श्र घकार रे । वाल मी साथ-साथ रहता है । दुलइन प्पढ़े परल रही है । प्तुममी खाय चले प्रये १ दुलइन इसपर पूछती हे | झषफार फे वायशूद पद वालक फ गाल प्र श्रपना हाप रल देती रे, उखे मीच शेती ए । कपड़े यग्ल द्‌, मया लर्ईगा पषटन टर पट धाहर निक्छती र । खाय-साय बालक चक्वा हें सुनदरी गोट वाले मलगसी कएंगे से उसका दाय नदा इटता 1 दुन्नइन धपनी ससियें फे साय नइर पर लायगी । यह सोचती दे कि वालक उसके साय इतना कैसे घुल-मिल गया । माँ श्पनी चगइ हे, दुलहन अपनी जग । दुलइन वाल को छुंड़ती दे, “तेरे लिए, मी ला दूंगी पक ग्




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