चाँद सूरज के बीरन आत्मकथा | Chand Suraj Ke Biran Atmakatha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आ्राक के फूल, घतुरे के फूल
सूप री णिदारी में थे स्पृतियाँ झाव मी बन्द पड़ी हैं । पिटारी
का दरना उठाया नहीं कि पुरानी स्मृतियाँ बाग उर्टी । शायर
इनका कोइ कम नहीं, शायद इनका कोइ झर्य नहीं, ये स्मठियाँ पिटारी से
सिर निकाल छ वार की हवा खाना प्वाती रै, षार फी मल देखना
पाइती हैं ।
घर में एक दुलइन श्राइ हे। रिश्ते में वालक की 'वाची है । माँ
कइती है, “पद तेरी मौसी रै }› वावी- मौसी, मौसी--चापी | बालक
श्म सम् ओ यह पात नहीं प्रासी । दुलएन तो दुलहन रे । शायः पालक
इतना मी नहीं सममता । बह दुलइन के पास से हिलता ही नहीं । माँ घूरती
है । भ्रष स्यों घूरती हे माँ ! बालक कुछ नहीं समम क्ता । मौ सिलसिला
कर इंस पड़ती दे वदद 'चाइठी हे कि बालक उसका झचल पकड़ कर मी उसी
तरइ चले जिस तरह बद्द श्पनी मौसी श्न श्रचल पड फर चलता रै ।
वालक यष नरी मरू सक्सा । दुलहन मीवर वाती शै बर्ह श्र घकार रे ।
वाल मी साथ-साथ रहता है । दुलइन प्पढ़े परल रही है । प्तुममी
खाय चले प्रये १ दुलइन इसपर पूछती हे | झषफार फे वायशूद पद
वालक फ गाल प्र श्रपना हाप रल देती रे, उखे मीच शेती ए । कपड़े
यग्ल द्, मया लर्ईगा पषटन टर पट धाहर निक्छती र । खाय-साय बालक
चक्वा हें सुनदरी गोट वाले मलगसी कएंगे से उसका दाय नदा इटता 1
दुन्नइन धपनी ससियें फे साय नइर पर लायगी । यह सोचती दे कि वालक
उसके साय इतना कैसे घुल-मिल गया । माँ श्पनी चगइ हे, दुलहन अपनी
जग । दुलइन वाल को छुंड़ती दे, “तेरे लिए, मी ला दूंगी पक ग्
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