चाँद सूरज के बीरन आत्मकथा | Chand Suraj Ke Biran Atmakatha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chand Suraj Ke Biran Atmakatha by देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi

Add Infomation AboutDevendra Satyarthi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
आ्राक के फूल, घतुरे के फूल सूप री णिदारी में थे स्पृतियाँ झाव मी बन्द पड़ी हैं । पिटारी का दरना उठाया नहीं कि पुरानी स्मृतियाँ बाग उर्टी । शायर इनका कोइ कम नहीं, शायद इनका कोइ झर्य नहीं, ये स्मठियाँ पिटारी से सिर निकाल छ वार की हवा खाना प्वाती रै, षार फी मल देखना पाइती हैं । घर में एक दुलइन श्राइ हे। रिश्ते में वालक की 'वाची है । माँ कइती है, “पद तेरी मौसी रै }› वावी- मौसी, मौसी--चापी | बालक श्म सम्‌ ओ यह पात नहीं प्रासी । दुलएन तो दुलहन रे । शायः पालक इतना मी नहीं सममता । बह दुलइन के पास से हिलता ही नहीं । माँ घूरती है । भ्रष स्यों घूरती हे माँ ! बालक कुछ नहीं समम क्ता । मौ सिलसिला कर इंस पड़ती दे वदद 'चाइठी हे कि बालक उसका झचल पकड़ कर मी उसी तरइ चले जिस तरह बद्द श्पनी मौसी श्न श्रचल पड फर चलता रै । वालक यष नरी मरू सक्सा । दुलहन मीवर वाती शै बर्ह श्र घकार रे । वाल मी साथ-साथ रहता है । दुलइन प्पढ़े परल रही है । प्तुममी खाय चले प्रये १ दुलइन इसपर पूछती हे | झषफार फे वायशूद पद वालक फ गाल प्र श्रपना हाप रल देती रे, उखे मीच शेती ए । कपड़े यग्ल द्‌, मया लर्ईगा पषटन टर पट धाहर निक्छती र । खाय-साय बालक चक्वा हें सुनदरी गोट वाले मलगसी कएंगे से उसका दाय नदा इटता 1 दुन्नइन धपनी ससियें फे साय नइर पर लायगी । यह सोचती दे कि वालक उसके साय इतना कैसे घुल-मिल गया । माँ श्पनी चगइ हे, दुलहन अपनी जग । दुलइन वाल को छुंड़ती दे, “तेरे लिए, मी ला दूंगी पक ग्




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now