जीवन लीला | Jeevan-lila

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Jeevan-lila by आचार्य काका कालेलकर - Aachary Kaka Kalelkarरवीन्द्र फेव्ठेकर - Ravindra Fevthekar

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रवीन्द्र फेव्ठेकर - Ravindra Fevthekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चै १५ देते है । भिस ससारका प्रथम यात्री है नदी) सिसीलिमे पुराने यात्री लोगोने नदीके सुद्गम, नदीके सगम ओर नदीके मुखको अत्यते पवित्र स्थान माना दै। जीवनके प्रतीकके समान नदी कहासे आती है और कहा तक जाती है? शुन्यमें से आती है ओर अनतमे समा जाती है । शून्य यानी अत्यल्प, सूक्म किन्तु प्रवल, और अनतके मानी है विदाल गौर सात! शून्य और अनत, दोनो मेक्से गूढ है दोनो अमर है। दोनो भेक ही ईह) शून्यमे से अनत -- यह्‌ सनातन लला है! कौशल्या या देवकीके प्रेममें समा जानेकं किमे जिस प्रकार परब्रह्मने वालरूप धारण किया, अुसी प्रकार कारुण्ये प्रेरित होकर अनत स्वय शून्यरूप धारण करके हमारे सामने खडा रहता है! जैसे जंसे हमारी आकटन-शक्ति वती दै, वैसे वैसे शून्धका विकास होता जाता है भौर मपना ही विकास-वेग सहन न होनसे वहं म्यदाका मुल्लघन करके या जसे तोडकर अनत वन जाता है-- विदूका सिघु वन जाता है। मानव-जीवनकी मी यही दशा है । व्यव्तिसे कुटूव, कुटुवसे जाति, जातिसे राष्ट्र, राष्ट्रसे मानव्य और मानव्यसे मूमा विद्व -- मिस प्रकार हृदयकी भावनाओका विकास होता जाता है। स्व-भाषाके द्वारा हम प्रथम स्वजनोका हृदय समझ लेते है और अतमें सारे विदवका आकलन कर छेते हूं । गावसे प्रान्त, प्रान्तसे देश और देशसे विर्व, जिस प्रकार हम 'स्व'का विकास करते करते ' सर्वे ' में समा जाते है । नदीका और जीवनका क्रम समान ही है। नदी स्वधर्म-निष्ठ रहती है भर अपनी कूल-मर्यादाकी रक्षा करती है, जिसीछिमें प्रगति करती है। और अतमें नामरूपको त्यागकर समुद्रम सस्त हो जाती है। अस्त होने पर भी वह स्थगित या नष्ट नहीं होती, चलती ही रहती है । यह है नदीका क्रम । जीवनका और जीवन्मुक्तिका भी यही क्रम है। क्या सिस परसे हम जीवनदायी शिक्षाके क्रमके वारेमें बोध लेंगे ? १९२२,




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