पंडित चैनसुखदास न्यायतीर्थ स्मृति ग्रन्थ भाग १ | Pandit Chainsukhdas Nyayatirtha Smriti Granth Khand - I
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पण्डित साइब के निधन के समाचार से हृदय को बडा आधात पहु चा ।
उनके निधन से समाज और देश की अपार क्षति हुई । „
श्रक्षयकुसार जन
सम्पादक- नवभारत टाइस्स
मेरे लिए पडित जी आत्मीय थे। बीस-पच्चीस वर्ष पूर्व पहली बार
उनसे भेट हुई थी हब से जब-जब जयपुर जाना हुआ उनसे बरावर मिलता
रहा । नाना समस्याओ पर उनसे विचार सुनकर प्रसन्नता होती । अपने
मत के प्रति उनका आग्रह नही रहता था । उदार चिन्तन उनकी ऐसी विशेषता
थी जो हमेशा के लिए मेरे मन पर छाप छोड गई है । धर्म के मूल सिद्धातो के वे
पुजारी थे और हृढता पूर्वक वे उनका पालन करते थे । वे सिद्धान्त सभी धर्मौ
मे समान है ।
शास्त्रो से उनकी अपार गति थी । “'अहेत प्रवचन' जैसा उत्तम सकलन
उनके अगाध पाडित्य और सूक्ष्म ज्ञान का प्रतीक है । उनका व्यक्तिगत जीवन
एक सत का जीवन था । पण्डित जी तो साधु, सर्वेजन श्रद्ध य थे ही उनको तो
अपने सुकृतो के फलस्वरूप भगवद्धाम प्राप्त होगा ही उनके लिए हमे शोकं भौर
प्रार्थना करने की आवश्यकता नही । ज्ञानी सन्त तो जीवन मृक्त होते ही है,
्रो° रासर्सिह तोमर
श्रध्यक्ष, हिन्दी विभाग, विश्व भारती
पंडित जी अत्यन्त सरल स्वभावी, मिलनसार, व्यवहार कुशल, स्पष्ट
चक्ता.थे । जेन समाज को आपके वियोग से महान क्षति हुई है. जिसकी पूर्ति हये
ही नही सकती ।
परसादीलाल पाटनी
कर दिल्ली
आप सुधारक एवं मीमांसक विद्वान् थे । लेखक, पत्रकार, कर्मठ कार्य-
कर्ता, सस्था सचालक आदि विभिन्न रूपो मे आपके उशन होते थे । सिद्धातवादी
थे, सिद्धात के समक्ष वे किसी की नही चलने देते थे, ढोग, आडम्बर एव पाखडो
की खूब पोल खोलते थे ! आप समाज मान्य ही नही ये अपितु राज्य मान्य भी
ये । स्वभाव के मृदुल, भद्र, सरल एव उदारये । अनेक सस्थाभो के सस्थापक,
सचालक, पोषक एव मूक सेवक थे ।
आपका हृदय, उदार विशाल एवं गम्भीर था । विद्वानों के प्रति सतत
सम्मान की भावना रखते ये ।
ज्लानचन्द्र जेन (स्वतन्त्र
वीरवाणी के लब्ध प्रतिष्ठ, सुयोग्य सम्पादक जैन समाज से चल बसे ।
यह् कषति साहित्य ससारके लिए पूणं होनी कठिन है। पण्डित जी प्राचीन
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