पंडित चैनसुखदास न्यायतीर्थ स्मृति ग्रन्थ भाग १ | Pandit Chainsukhdas Nyayatirtha Smriti Granth Khand - I

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pandit Chainsukhdas Nyayatirtha Smriti Granth Khand - I by ज्ञानचन्द्र खिंदका - Gyanchandra Khindka

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ज्ञानचन्द्र खिंदका - Gyanchandra Khindka

Add Infomation AboutGyanchandra Khindka

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पण्डित साइब के निधन के समाचार से हृदय को बडा आधात पहु चा । उनके निधन से समाज और देश की अपार क्षति हुई । „ श्रक्षयकुसार जन सम्पादक- नवभारत टाइस्स मेरे लिए पडित जी आत्मीय थे। बीस-पच्चीस वर्ष पूर्व पहली बार उनसे भेट हुई थी हब से जब-जब जयपुर जाना हुआ उनसे बरावर मिलता रहा । नाना समस्याओ पर उनसे विचार सुनकर प्रसन्नता होती । अपने मत के प्रति उनका आग्रह नही रहता था । उदार चिन्तन उनकी ऐसी विशेषता थी जो हमेशा के लिए मेरे मन पर छाप छोड गई है । धर्म के मूल सिद्धातो के वे पुजारी थे और हृढता पूर्वक वे उनका पालन करते थे । वे सिद्धान्त सभी धर्मौ मे समान है । शास्त्रो से उनकी अपार गति थी । “'अहेत प्रवचन' जैसा उत्तम सकलन उनके अगाध पाडित्य और सूक्ष्म ज्ञान का प्रतीक है । उनका व्यक्तिगत जीवन एक सत का जीवन था । पण्डित जी तो साधु, सर्वेजन श्रद्ध य थे ही उनको तो अपने सुकृतो के फलस्वरूप भगवद्धाम प्राप्त होगा ही उनके लिए हमे शोकं भौर प्रार्थना करने की आवश्यकता नही । ज्ञानी सन्त तो जीवन मृक्त होते ही है, ्रो° रासर्सिह तोमर श्रध्यक्ष, हिन्दी विभाग, विश्व भारती पंडित जी अत्यन्त सरल स्वभावी, मिलनसार, व्यवहार कुशल, स्पष्ट चक्ता.थे । जेन समाज को आपके वियोग से महान क्षति हुई है. जिसकी पूर्ति हये ही नही सकती । परसादीलाल पाटनी कर दिल्ली आप सुधारक एवं मीमांसक विद्वान्‌ थे । लेखक, पत्रकार, कर्मठ कार्य- कर्ता, सस्था सचालक आदि विभिन्न रूपो मे आपके उशन होते थे । सिद्धातवादी थे, सिद्धात के समक्ष वे किसी की नही चलने देते थे, ढोग, आडम्बर एव पाखडो की खूब पोल खोलते थे ! आप समाज मान्य ही नही ये अपितु राज्य मान्य भी ये । स्वभाव के मृदुल, भद्र, सरल एव उदारये । अनेक सस्थाभो के सस्थापक, सचालक, पोषक एव मूक सेवक थे । आपका हृदय, उदार विशाल एवं गम्भीर था । विद्वानों के प्रति सतत सम्मान की भावना रखते ये । ज्लानचन्द्र जेन (स्वतन्त्र वीरवाणी के लब्ध प्रतिष्ठ, सुयोग्य सम्पादक जैन समाज से चल बसे । यह्‌ कषति साहित्य ससारके लिए पूणं होनी कठिन है। पण्डित जी प्राचीन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now