धीरे बहो गंगा | Dheere Baho Ganga
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
वह शब्दो श्नौर भावो की सारी शक्ति से वार. करता है। यो कटिए-कि वह मान-
वता, दिव्यता श्रौर भद्रता का बाना बधे होता है; जो दलित दै, पीडित है
घन्चित है--चादे वह व्यक्ति हौ या समूह, उसकी हिमायत श्र चकालत
करना उसका फ़ज़* दै। उसकी अदालत समाज है, इसी अदालत, के सामने
वह इस्तगासा पेश करता है श्रौर उसकी न्यायच्रत्ति तथा सोदयंदरत्ति को जाग्रत
करके ्रपना यसन सफल समता दै हमारी कसोटी पर वही साहित्य खरा
उतरेगा, जिसमे उच्च चिन्तन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौंदर्य का सार
हो, सृजन की आत्मा दो, जीवन की सचाईयो का प्रकाश 'हो--जो हममें गति
और संघर्ष और बेचेनी पेदा करे, सुलाये नदी; क्योंकि अब ओर सोना ख्त्यु
का लक्षण दे ।” इसी दृष्टिकोण से भारतीय लोकगीत का अध्ययन
किया जानी चाहिए, क्योंकि लोक-प्रतिभा ने कभी प्रतिगामी शक्तिर्यो का साथ
नहीं दिया ।
प्रेरणा के मूल-खोव से भारतीय लोकगीत कभी नदीं कटे । दिशा-
निर्दैश श्नौर अभिव्यक्ति का माध्यम प्रस्तुत करते हुए जीवन की शम्रगामी
शक्तियो ने सदैव लोक-प्रतिभा का साथ दिया है । युग-युग को लांघते हुए
अपनी श्र चयात्रा मे सामाजिक शक्तियों की विकास-गाथा को विभिन्न प्रांदे
शिक भाषाओ में प्रस्तुत करने का दायित्व निभाया है। ' ` पे
उराँव लोकगीतोंके अन्वेषक श्री डब्लयू जी. झाचंरने वेरियर ऐलविन द्वारा
संग्रहीत और सम्पादिन बेगा लोक-कऋविताकी समालोचना करते हुए लिखा दै-
“वैज्ञानिक सामभ्रीके रूम मे ती इसका महत्व है ही, पर इसका झंतिं झावश्यक
य॑ है संस्कृत्य को न्ते जित करना । हम मानव का अध्ययन केवल इसी
लिए नहीं करते किं उसे खश्ड-खण्ड कर डालें । दम इसलिए जांच करते हैं
कि दस कुछ सीखें । यूरोप में बीसवी शताब्दी की कला के पीछे नीध मूर्तिकला
नज़र आती दै । बैगा लोककविताश्रोका महत्व यद्द दे कि वे इंगलेड और भारत
मे समकालीन कविता के लिए एक नया श्रीगणेश सुकाती दें । ( वैन इन
दृरिडया,' माच १४४३, पृष्ठ ७० >) । सुक झाचर के, दृष्टिकोण, मे बहुत बढ़ा
तथ्य नजर झाता दे । चस्तुतः भारतीय लोक-गीतो का .झध्ययन हमारे सम-
कालीन साहित्य के सृजन मे विशेष रूप से सहायक सिद्ध हो सकता है ।
मध्य-परान्त की बनवासिनी गोड कन्या जब सडक पर गिट्टी तोद़ते
समय अपने परस्परागत स्वरोमे श्राज का दुखडा पिरोती है तो उसकी झावाज़
खुनी-अन-सुनी नौ की जा स्कती । गिद्धी टूटने के साथ-साथ गोड कन्या]के
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