त्याग ह्रदय की वृत्ति है | Tyag Hridaya Ki Vritti Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पिताजी, प्राज बडा अच्छा नाटक है १५
की सूचना देकर ही वह् लौट श्राये थे । उस समय रामचन्दरन ने
उनसे कहा था, कोई नात नही, मोहम्मद ही पवेत के पास
पहुच जायगा 1
जाज॑ ने उत्तर दिया था, “हम इस योग्य कहा कि प्रभु
हमारे घर पधारे 1 ”' न `, +.
लेकिन प्रभु तो पंघार गये थे । +
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पिताजी, प्राज्य अच्छा नाटक है
श्रपने पिता की चर्चा करते हुए गाधीजी ने स्वय कहा है
“पेरे पिता छोटे-से-छोटा काम भी नौकर-चाकरो से नहीं कर-
वाते थे, बल्कि मुभसे ही करवाते थे । मेरे प्रति उनकी भ्रासक्ति
कुछ श्रलौकिक थी । एसा पिता बनिरला ही होगा। मैने जिस दिन
नाटक देखा, उस दिन मेरे पिता सिर पीटकर रोये थे ।””
गांधीजी ने जिस घटना की ओओरसकेत किया है वह इस
प्रकार है उस दिन सदा की तरह वह अपने पिता के पैर दबा
रहे थे । दबाते-दबाते मन मे विचार उठा कि श्राज छुट्टी सिल
जाय तो बड़ा भ्रच्छा हो । नाटकं देखने को मिले ।
साहस करके उन्होने पिताजी से कहा, “पिताजी .
पिताजी क्यो सुनने लगे ! जान गये कि भ्राज लड्के का
चित्त कही-न-कही लगा हुआ है । गाधीजी ने दूसरी बार कहा,
“पिताजी, ्राज बडा श्रच्छा नाटक है 1
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