वाङ्गमय विमर्श | Vangmaya - Vimarsh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
580
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कन्य
काव्य का स्वरूप
कान्य के तीन पक्त होते दै--छृति, कतो और ग्राहक (पाठक,
श्रोता या दशक) । इन्दी तीनो पत्तो के विचार से काव्य के
स्वरूप, प्रयोजन, हतु आदि का विचारः करिया जादा है 1 काव्य
का नाम लेते हो सबसे पहले उसके स्वरूप या लक्षण की , वा
आती हे । लक्षण दो प्रकार के होते दै--वदिरंग-निरूपक शौर
अंतरंग-निरूपक । बहिरंग-निरूपक लक्षण उसे कहेूँगे' जिसमें
विषय था वस्तु का बोध कराने के लिए उसके बाह्य चिह्ोँ का
वर्णन या उल्लेख -किया गया हो और ंतरंग-निरूपक लचण उसे
मानेंगे जिससे वस्तु के ्याभ्यंतर गुणों की चर्चा की गई हो । झतः
काव्य का लक्षण दो ढंग का होता है--बाह्य या वर्सनात्मक
र ्ाभ्यंतर या सूत्रात्सक । पहले में केवल काव्य के बाहरी
रूप काः उसके अवयवो के संघटन का, उल्लेख रहता' है और
दूसरे में कोई ऐसी विशेषता लक्षित कराने का प्रयत कियो जाता
है जो केवल काव्य में ही पाई जाती है ।
यदि का जाय करि जो शब्दाथे ( सचना ) दोप-रदित, गुण-
सहित और अलंकार से प्रायः युक्त दो बह 'काव्य' है* तो माना
जायगा कि काव्य के अवयवोँ का बर्णल-मात्र किया 'गया है ।
कान्य म शब्द चौर अथं की योजना रहती है । ये दोनो अन्यो-
त
# तददोषौ शब्दार्थो खशुएावनलक्ृती पुनः कापि--कान्यमकाद्ः।
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