प्रिय प्रवास | Priypravas

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Priypravas by अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' - Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariaudh'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) जिस कविता मे न हो वह भी कोई कविता है ! कविता तो वहीं है जिसमे कोमल शब्टो कां विन्यास हो, जो मधुर अथच कान्तपदा- वती द्वारा अलंकृत हो । खडी वोली मे अधिकतर संसछृत-शबव्दौ का प्रयोग होता है, जो हिन्दी के शब्दो की अयेक्ता ककंश होते है। , इसके व्यतीत उसकी क्रिया भी त्रजभाषा की क्रिया से रूखी और कठोर होती है; और यही ,कारण है कि खडी बोली की कविता सरस नही होती और कविता का प्रधान गुण साघुय्य व्औौर प्रसाठ उसमें नहीं पाया जाता ।.यहाँ पर मै यह कहूँगा कि पदावली की कान्तता, स॒धुरता, कोमलता .. केवल. पदावली से ही सन्निहित है; या उसका कुं सम्बन्ध मनुष्य के सर्कार चौर उसके हृदय से भी है ? मेरा विचार है कि उसका कुछ सम्बन्ध नदी, वरन्‌ बहुत कुछ सम्बन्ध मनुष्य के सस्कार और उसके हृदय से है। क्पूरमंजरी- कार प्रसिद्ध राजशेखर कवि अपनी प्रस्तावना मे प्राकृतभाषा की. कोमलता की प्रशंसा करते हुए कहते है -- परुसा' सक्छभव्रधा पाडयवबन्धोविदोद सुउमारो 1 । पुरुसाण मदिलाण जेसिय मिहन्तरं तेत्तिय सिमाणमू | इस श्लॉक के साथ निम्नलिखित सस्कृत रचनाओं को मिला कर पढ़िये -- इतर पापफलानि यथेच्छया वितरतानि सहे चतुरानन } अरसिकरु कचित्यमिवेदनम्‌ शिरसिमाल्खि माट्खिमा ल्खि।)। विद्या विनयोपेता हरति न. चेतासि कस्य मनुजस्य) काञचनमणियोगो नो जनयति कस्य लचनानदम्‌ ॥ वारिजेनेव सरसी झाणिनेत्र निगीधिनी । यौवनेनेव घनिता नयेन श्रीमनोहरा 1! आयाति याति पुनरेव जठ प्रयाति पद्मादुराणि विचिनोति धुनोति पक्षों ।




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