दर्शनपहुड प्रवचन | Darshan Pahud Pravachan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाया २ ११
वह शाश्वत है, उसे जो न पहिचाने सो भव्के श्रीर जो पदिः
चाने उसका उद्धार हो । बस सर्वे उपदेशोका सार निचोड
निष्कष इतना ही है कि जिसे यहाँ तक कहा कि जिसने इस
स्वभावको जाना उसने सब जैनशासनकों जाना, क्योकि जैन-
शासनकी बडी बड़ी न्याय छटावोसे जानकारी करनेका प्रयो.
जन क्या है ? वाद-विवाद करना प्रयोजन है क्या, या दुनिया
मं श्रपना पाडित्य जाहिर करना है क्या ? क्या प्रयोजन है
झागमके श्रभ्यासका ? बडी-बड़ी पडिताई पा लेनेका प्रयोजन
है क्या ? बस इस सहन शुद्ध, सहज सिद्ध स्वभावका परिचय
पाना श्रौर फिर उसकी ही घुन बन जाना, तो ऐसे इस सहज
स्वभावका परिचय मिले, भ्रतुदूति मिले वहाँ है यह सम्य.
श्ञान । नो सम्यक् है, निरपेक्ष है, सहज है, मात्र सत्वके
कारण है ऐसे सम्यक्तत्त्वका दर्दान होना सम्यग्दरशन है।
सम्यक्का सम्यक्म सम्यक् प्रणालीसे दर्शन होता सम्यग्दशंन
है । सम्यग्दशेन श्रसुभूतिपूर्वेक ही होता है, उसके बोद भत्रुभूति
चले, किसी बाह्यपदायंमे भी ध्यान दे, ग्रौर प्रर प्रवृत्ति काम-
काज करे यहु तो सम्भव है सम्यग्दर्शनके होते हुए भी, लेकिन
सम्पग्दर्शनकी जो निष्पत्ति है वह ज्ञानादुसुतिपूर्वक ही है भ्रोर
इसी कारण ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाता है । वही ज्ञान जो पहले
था सम्यग्दर्शन नामको नहीं पा रहा था, सम्यग्दर्शन होते ही
सम्यग्ज्ञान नाम पा गया । | $
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