दर्शनपहुड प्रवचन | Darshan Pahud Pravachan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाया २ ११ वह शाश्वत है, उसे जो न पहिचाने सो भव्के श्रीर जो पदिः चाने उसका उद्धार हो । बस सर्वे उपदेशोका सार निचोड निष्कष इतना ही है कि जिसे यहाँ तक कहा कि जिसने इस स्वभावको जाना उसने सब जैनशासनकों जाना, क्योकि जैन- शासनकी बडी बड़ी न्याय छटावोसे जानकारी करनेका प्रयो. जन क्या है ? वाद-विवाद करना प्रयोजन है क्या, या दुनिया मं श्रपना पाडित्य जाहिर करना है क्या ? क्या प्रयोजन है झागमके श्रभ्यासका ? बडी-बड़ी पडिताई पा लेनेका प्रयोजन है क्या ? बस इस सहन शुद्ध, सहज सिद्ध स्वभावका परिचय पाना श्रौर फिर उसकी ही घुन बन जाना, तो ऐसे इस सहज स्वभावका परिचय मिले, भ्रतुदूति मिले वहाँ है यह सम्य. श्ञान । नो सम्यक्‌ है, निरपेक्ष है, सहज है, मात्र सत्वके कारण है ऐसे सम्यक्तत्त्वका दर्दान होना सम्यग्दरशन है। सम्यक्‌का सम्यक्‌म सम्यक्‌ प्रणालीसे दर्शन होता सम्यग्दशंन है । सम्यग्दशेन श्रसुभूतिपूर्वेक ही होता है, उसके बोद भत्रुभूति चले, किसी बाह्यपदायंमे भी ध्यान दे, ग्रौर प्रर प्रवृत्ति काम- काज करे यहु तो सम्भव है सम्यग्दर्शनके होते हुए भी, लेकिन सम्पग्दर्शनकी जो निष्पत्ति है वह ज्ञानादुसुतिपूर्वक ही है भ्रोर इसी कारण ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाता है । वही ज्ञान जो पहले था सम्यग्दर्शन नामको नहीं पा रहा था, सम्यग्दर्शन होते ही सम्यग्ज्ञान नाम पा गया । | $




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