बीसवी शताब्दी के हिंदी नाटको का समाजशास्त्रीय अध्ययन | Beeswee Shatabdi Ke Hindi Natako Ka Samaajshastriya Adhyyan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१
च्िष्नय-प्नलेच्य
समाजशास्त्र स्वस्य एव विकास
समाजशास्त्र फा ज्ञाल्दिक अ्रथं
प्रजी भाषा का ब्द 'सोनियोलाजी दो प्न भ्सोद्िपो (४०८९) श्र
श्लाजी (ण्डः) को मिलाङ्रचनाहै 1 सोशियों का भय है समाज से सर्म्वाधित
आर “लाजी' का अथ है जान प्रथवा विज्ञान । इस प्रवार 'मोरियोलॉजी वा
चान्द श्रय समाज से सम्बधित वह विज्ञान है जो समाज के वारे में बैशानिव
अप्ययन करता हैं ।' परन्तु यह् दाब्दिक प्रथ समाजशास्त्र वी वाम्तविव प्रइति तथा
विपय-कषेत्र के बारे मे सब वुछ वताने मे श्रसमय है ।
समाजशास् की परिभाषा
समाजदास्व के पिय म दिभिःन चिट्ठाना ने भ्लग अलग प्रकार से
परिभाषाएं दी हैं । गिलिन और थिलिन ते समाजधास्त्र की परिभाषा इस प्रकार
थी है. विस्तृत रूप में समाजधास्त्र को जीवित प्राणियों वे एक दुसरे के सम्पक में
भान के फलस्वरूप उत्तनन होनेवाली श्र तम्ियामा का प्रष्ययत माना जाता है।”
सोरोविन के भ्नुसार, “समाजगास्त्र सामाजिक सास्कृतिक घटनाओं के
सामाय स्वरूपा, प्राइपों और भ्नक प्रकार के अत सम्वधघो को सामान्य विज्ञान
है।
मक्स चेघर ने समाजशास्त्र थी परिभाषा बरते हुए लिखा है कि 'समाजधास्त्र
वह बितान है जो सामाजिक क्रिया का ध्रयपूण (ध्यास्यात्मक) बोध कराते का
प्रयल वरता है तथा जिससे इसकी (सामाजिक जरिया की) गतिविधि तथा प्रभावा
की बारणसहित व्यास्पा प्रस्तुत वी जा सके 1
भ्रागवने भर निमदाफ वे श्रनुसार समाजशास्थ्र मनुष्य के सामाजिक जीव
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