विषपान | Vishpaan

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Vishpaan by सोहनलाल द्विवेदी - Sohanlal Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दैत्यराज वल्लि ने सोचा यह भी अच्छा प्रस्ताव रहा, श्मर हमारे ही आश्रित हं मिले £ प्रमृत मिते, हो हपं महा ! त्रिपुर श्रादि दैंत्यों ने मिलकर घ्रीर विचार विमर्श किया, फिर देवों का यह महत्त्वमय संधि-निमंत्रण॒ मान लिया । बलि ने कहा इन्दं सै, श्रव से हममे तुमं सधि रही, जब तक श्रमृत न मिले, तव तलक दानें श्रवर सिंघु मही ।'




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