सूची पत्र पहला खंड | Soochi Patra Pehla Khand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ पटला खणड वंशावली ( र श्यापङे पाम रही बहुत श्च्छी तरह रददी--आपके सहवास से मुझे बहुत '्ानन्द मिला । श्नापसे मैं बहुत प्रसन्न हूँ । इससे मैं सब बातें श्रापसे साफ़ खार क्ट देती ह । इस वटना से चापो दुम्स न करना चाहिए | इुम्स का कोई कारण नहीं । मै महिं जह्‌, की कन्या गङ्गा हं परम तेजस्वी घसुशरों को महपिं वरिष्ठने शाप दिया या कि तुम लोग जाकर मर्त्यलोक में जन्म ला । परन्तु सुमे धड़ कर मल्यैलोक में कोई खी उन्द अपने गर्भ में धारण करने के येग्य न थी। यह समक कर वे श्याठों बसु मेरे पास 'छाये। उन्होंने सुकसे प्रार्थना की कि लुम मेरी माता होने की कृपा करो | पर ज्यों्ी इस पैदा हों स्यॉददी मर्व्यलेफ़ में रहने के हमारे दुःख के दूर कर देना | पर्थान्‌ फैटा होते ही इमास नाश करके मदर्पि के शाप से हमें उद्ार करना जिसमें हमें बहुत द्विनों तक मव्येलेके में न रहना पे । उनी इस प्राना के मेनि मान लिया रौर भारत वंश को ही उनके जन्म के येय समम्हा ! इससे मानवी रूप धारण करे ओ श्रापफे पाल च्रं { इन वसुनो के पिता होने से शाप श्रपने फ श्रतार्यं समे । श्रापको शोक न करना चाहिए । जिस यू--नामक यसु के अपराध से महर्षि वशिष्ठ ने शाप दिया था चहीं बसु आपका यह झाठयाँ पुत्र हुछा है । यद्‌ जन्म भर श्यापके वंशा में रह्‌ कर उसे उञ्यल करेगा । मे सुद ही इसका यथाचित लालन-पालन करूँगी । आप निश्चिन्त हूजिए 1 इतना कह कर गङ्गादेवी उस पुत्र के लेकर 'अन्तर्धौन हो गई' । पत्नी 'और पुच के वियेग से राजा के बड़ा दुःख हुआ । उसे दूर करने की इच्दा से राजा शान्तनु सिसी प्रकार राज-काज करने लगे । उन्होंने साचा कि काम में लगे रहने से धीरे धीरे हमारा शोक जाता रहेगा । शान्तलु बड़े बुद्धिमान्‌ रौर धार्मिक थे । उनके सद्गुणो से प्रसन्न होकर चारो दिशाओं के राजों ने उन्द श्पना सम्राट्‌ वनाया; उनके श्पना राजराजिश्वर समझा । शान्तनु ने ऐसी अच्छी तेग्ह प्रजा-पालन किया कि उनके राज्य में कभी फिसी के क्रिंसी तरह का शोक, डर या हु स नहीं हु्य। इस तरह प्रजा के सुग्य के बढ़ाते हुए शान्तलु के शान्तिपूर्वक राज्य रते बुधं समय वीता । एक दिन थे शिकार सेलने गये श्रीर एक हरिणी प्रं तीर चलाया । तीर उसके लगा । बद तीरसे विधी हुई भगी । राजा शान्तनु भी उसके पीछे दौड़े श्ौर गड्ठा के किनारे कर उपस्थित हुए । बहाँ उन्होंने देसा कि गड्ठा प्राय: सूखों पड़ी हैं । इससे उन्हें बड़ा रमय हुआ । इस अदभुत घटना का कारण बे ढूँद़ने लगे तो उन्होंने देखा कि एक देवता के समान रूपवाला चालक बाणों की वर्षा कर रहा है । उसी की वाणवर्पा ने गह्ठा की धारा के रोक दिया है । बाण चलाने में उसकी चतुरता देस कर राजा के महदा-घाथ्चरय्य हुआ । यह्‌ वही वालक या जिसे गङ्गा ने यजा शान्तनु के दिया था । परन्तु राजा ने उसे उसके जन्म होने ही के समय देखा था । उसके पीछे ( कभी नहीं देखा था । इससे थे उसे नहदीं पदचान सके । उसका नाम था देवघर । राजा ने तो पुत्र के नहीं पहचाना, पर पुत्र ने पिता के पहचान लिया | उन्हें देखते ही देव्नन न्तर्धान होकर व्पनी माता के पास परहा शचीर्‌ सारा दृत्तान्त कद सुनाया । इस घटना से राजा शान्तनु के श्रौर भी श्धिक श्रा्य्यं टुष्या । विष्य मे दधे हृग्‌ वे वह पर चुपचाप यदे थे कि पटले करी तरद्‌ मानवी सूप धारण करके गद्धा उनके सागमे पुच्-सदित उपस्थित हुई 'और वोली :-- महाराज ! श्राप पुत्र दैवत्रत के ने वड़े यल से पाल-पोस कर चड़ा किया दै । वसिष्ठ, शचा, बस्पति, परश्चराम श्रादि श्रेप्ठ गुरुओं ने इसे वेद, वेदाङ्ग और शख्ास्-विया की शिक्षा बहुत ही '्रच्छी तरह दी है । केई बात ठेसी नही रद्‌ गई जो इसने न सीसी हो । अव श्राप सव गुणो से सम्पन्न 'झपने पुत्र के लीजिए । च शान्तगु ने एसे तेजस्वी 'और विद्वान्‌ पुत्र के पाकर बड़े छान्द से श्यपनी राजधानी में प्रवेश किया । उस उन्होंने 'छापना युवराज बनाया । राजा के इस काम से उसकी प्रजा वड़ी प्रसन्न हुई |




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