सूची पत्र पहला खंड | Soochi Patra Pehla Khand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
384
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ पटला खणड वंशावली (
र श्यापङे पाम रही बहुत श्च्छी तरह रददी--आपके सहवास से मुझे बहुत '्ानन्द मिला । श्नापसे
मैं बहुत प्रसन्न हूँ । इससे मैं सब बातें श्रापसे साफ़ खार क्ट देती ह । इस वटना से चापो
दुम्स न करना चाहिए | इुम्स का कोई कारण नहीं । मै महिं जह्, की कन्या गङ्गा हं परम
तेजस्वी घसुशरों को महपिं वरिष्ठने शाप दिया या कि तुम लोग जाकर मर्त्यलोक में जन्म ला ।
परन्तु सुमे धड़ कर मल्यैलोक में कोई खी उन्द अपने गर्भ में धारण करने के येग्य न थी।
यह समक कर वे श्याठों बसु मेरे पास 'छाये। उन्होंने सुकसे प्रार्थना की कि लुम मेरी माता होने
की कृपा करो | पर ज्यों्ी इस पैदा हों स्यॉददी मर्व्यलेफ़ में रहने के हमारे दुःख के दूर कर देना |
पर्थान् फैटा होते ही इमास नाश करके मदर्पि के शाप से हमें उद्ार करना जिसमें हमें बहुत
द्विनों तक मव्येलेके में न रहना पे । उनी इस प्राना के मेनि मान लिया रौर भारत वंश को
ही उनके जन्म के येय समम्हा ! इससे मानवी रूप धारण करे ओ श्रापफे पाल च्रं { इन वसुनो
के पिता होने से शाप श्रपने फ श्रतार्यं समे । श्रापको शोक न करना चाहिए । जिस यू--नामक
यसु के अपराध से महर्षि वशिष्ठ ने शाप दिया था चहीं बसु आपका यह झाठयाँ पुत्र हुछा है ।
यद् जन्म भर श्यापके वंशा में रह् कर उसे उञ्यल करेगा । मे सुद ही इसका यथाचित लालन-पालन
करूँगी । आप निश्चिन्त हूजिए 1
इतना कह कर गङ्गादेवी उस पुत्र के लेकर 'अन्तर्धौन हो गई' । पत्नी 'और पुच के वियेग
से राजा के बड़ा दुःख हुआ । उसे दूर करने की इच्दा से राजा शान्तनु सिसी प्रकार राज-काज
करने लगे । उन्होंने साचा कि काम में लगे रहने से धीरे धीरे हमारा शोक जाता रहेगा ।
शान्तलु बड़े बुद्धिमान् रौर धार्मिक थे । उनके सद्गुणो से प्रसन्न होकर चारो दिशाओं
के राजों ने उन्द श्पना सम्राट् वनाया; उनके श्पना राजराजिश्वर समझा । शान्तनु ने ऐसी अच्छी
तेग्ह प्रजा-पालन किया कि उनके राज्य में कभी फिसी के क्रिंसी तरह का शोक, डर या हु स नहीं
हु्य। इस तरह प्रजा के सुग्य के बढ़ाते हुए शान्तलु के शान्तिपूर्वक राज्य रते बुधं समय वीता ।
एक दिन थे शिकार सेलने गये श्रीर एक हरिणी प्रं तीर चलाया । तीर उसके लगा । बद
तीरसे विधी हुई भगी । राजा शान्तनु भी उसके पीछे दौड़े श्ौर गड्ठा के किनारे कर उपस्थित
हुए । बहाँ उन्होंने देसा कि गड्ठा प्राय: सूखों पड़ी हैं । इससे उन्हें बड़ा रमय हुआ । इस अदभुत
घटना का कारण बे ढूँद़ने लगे तो उन्होंने देखा कि एक देवता के समान रूपवाला चालक बाणों
की वर्षा कर रहा है । उसी की वाणवर्पा ने गह्ठा की धारा के रोक दिया है । बाण चलाने में
उसकी चतुरता देस कर राजा के महदा-घाथ्चरय्य हुआ । यह् वही वालक या जिसे गङ्गा ने यजा
शान्तनु के दिया था । परन्तु राजा ने उसे उसके जन्म होने ही के समय देखा था । उसके पीछे (
कभी नहीं देखा था । इससे थे उसे नहदीं पदचान सके । उसका नाम था देवघर । राजा ने तो पुत्र
के नहीं पहचाना, पर पुत्र ने पिता के पहचान लिया | उन्हें देखते ही देव्नन न्तर्धान होकर व्पनी
माता के पास परहा शचीर् सारा दृत्तान्त कद सुनाया । इस घटना से राजा शान्तनु के श्रौर भी
श्धिक श्रा्य्यं टुष्या । विष्य मे दधे हृग् वे वह पर चुपचाप यदे थे कि पटले करी तरद् मानवी
सूप धारण करके गद्धा उनके सागमे पुच्-सदित उपस्थित हुई 'और वोली :--
महाराज ! श्राप पुत्र दैवत्रत के ने वड़े यल से पाल-पोस कर चड़ा किया दै । वसिष्ठ,
शचा, बस्पति, परश्चराम श्रादि श्रेप्ठ गुरुओं ने इसे वेद, वेदाङ्ग और शख्ास्-विया की शिक्षा
बहुत ही '्रच्छी तरह दी है । केई बात ठेसी नही रद् गई जो इसने न सीसी हो । अव श्राप सव गुणो से
सम्पन्न 'झपने पुत्र के लीजिए ।
च शान्तगु ने एसे तेजस्वी 'और विद्वान् पुत्र के पाकर बड़े छान्द से श्यपनी राजधानी में
प्रवेश किया । उस उन्होंने 'छापना युवराज बनाया । राजा के इस काम से उसकी प्रजा वड़ी प्रसन्न हुई |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...