ढोलन कुंजकली | Dholan Kunjkali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शव्या चायी ? त
मदाच आने, एक मोवा, धान सौर गुड 1 रूपाली ने विंगतवार
वताया,'पर तु पर्सानक्या है? र
पे सोर कौ भरद लगी दै । घरमे बासी रोटी भौ नहीं है। ही
“अभी खिचडा वा देती हू ।” उसने ढोलवी को साल वी खूटी पर
टागा! हीरू थायद नियटने चला गया था । रुपाली के मन में खाली खाट
को दज़बर बितृप्णा सी जागी । सोद बठी--वितिना निठल््ला और निकम्मा
है उमका मरद ? उसकी जीम पर खारापन तर आया ।
उसने भारना उतार पवा 1 काचली यर लहभे म उमका भामं वदन
अब भी जाक्पव लग रहा था । बह कुजड़ी के पास सावी 1 उसके सिर पर
स्नहिस हाथ फेर वोली, ' लारी ! जा, भागवर 'गोर' के रास्ते म स कुछ
दामे (विना बनाय हए उपल) चुग ला । मैं खिचडा दूट जेती हु । '
बुजडी लाहू का बना पुयना बूटा लेकर भाग गयी ॥
रुपाली खिचडा ब्टूटने लगी! जागन के एक कोने म ही पत्यर का
“ऊपर वना हुआ था । उसके पास ही ढाई-तीन फीट का लवंडी का मूमल
रखा हुआ था।
ममत का निचला हिस्मा पतला था । वह् खिचडा कूटत कूटत साचने
लगी-+
उक्र शिवपते के वारेम 1
अपने प्रेमी जैतसिंह वे बारेमे 1
अतन दा एकं टुबडा उसमे सामन पमर गया--
“मरे 1 तू तो सफा गली है।' जैतरसिह न रपाली को समभाते हुए
कहां “सलाम (आग) वो तू दोय से सत्त देव । रुपागी ! मैं तुमे सच्ची
त्रात करता हू पर मरान्तरा ब्याह नहीं हो सदता । अखिर युभम ठास
या रक्त है। मरे पर की मान मरजाद है!” `
रुपानी वो मार्खे भीग गयी थी ।
५ तुमः =
शं 1 वकर मपनडरम् रम्द सक्ता ह 4 दुम पनी पडदायतण चनास
रपाली से नहीं रहा गया । उसन तीसरी वात कह दी थी, आप वहत
दोलन कुजदजी | १,
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