भाषा ऋजुपाठ [भाग १] | Bhasha Rijupaath [Bhaag १]
श्रेणी : लोककथा / Folklore
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
906 KB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बद्र क्डुम्यवा ले धन के न होने से कष्ट पाते हैं ॥ सो वहीं चल
कुछ थोड़ा सा,धन हम दोनों शने ले भाव ॥ वह बोला नित
ऐसादी कयो +
जब वे दोनों चस स्वान को ख्ोदने लगे तब उन्दों ने खाली
बर्तन देखा 4 दरतमे मेँ पाप बुद्धि भपते सिर को पीट कर बीना
है धर्स्सबुद्धिं; तुर्हीं इस धन को ले गए, भीर कोई नहीं भी
सिर भी गड़हद भर दिया । इस कारण सुर्क उसका भाषा पे
दो, नहीं तो में क्चहदी में ज्ञाकर कइंगा । ष्ठते कहा अरे
दुए दस मत क्र । में धर्र्मशुद्धि हा ऐसा चोर का काम नहीं
करता । द्रम प्रकारः वे दोनी लष्टये एए धर्माधिकारी के पाप
जाकर और एक ट्रसरे करो दीप लगाते वे योते +
इसके 'भनस्ता, लव शाल्पुरुपों ने उन से गपय कर करने को
कड़ा तब तो पापदुदि दोला कि अड्टी यह न्याव ली डी नहीं
| डेख पढ़ता ४
. इस विषय मे इस शोगों का साक्षी [ गदाइ ] दनदेवता
है “वही दोनो में से एफ को चोर या साव कर देगा तब वे
सब योले हो डॉ,सुमने व इत पच्छा हा 1 इस लोगों को भी
इस विषय -( सुकहमे )-में बड़ा भायर्य है । करन प्रातःदफाल तुम
शोनों को हम,लोगों के संग टस बन में चलना पाते 1
इतने मेँ पाप बुद्धि भपने घर लाकर भपन पिता से कहने
नगा-कि है पिता] मैंने म्म् बृहि का बहत धन सुरानिका ङ,
बह तुषदारे कने सै एच लायगा नड़ीं तो रस लोगो यता प्राय
श्री के खा अपयगा 1 वह बोला घुष! शीघ्र कहो को में करके
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