भाषा ऋजुपाठ [भाग १] | Bhasha Rijupaath [Bhaag १]

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Bhasha Riju [Bhaag १] by अम्बिकादत्त व्यास - Ambikadatt Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बद्र क्डुम्यवा ले धन के न होने से कष्ट पाते हैं ॥ सो वहीं चल कुछ थोड़ा सा,धन हम दोनों शने ले भाव ॥ वह बोला नित ऐसादी कयो + जब वे दोनों चस स्वान को ख्ोदने लगे तब उन्दों ने खाली बर्तन देखा 4 दरतमे मेँ पाप बुद्धि भपते सिर को पीट कर बीना है धर्स्सबुद्धिं; तुर्हीं इस धन को ले गए, भीर कोई नहीं भी सिर भी गड़हद भर दिया । इस कारण सुर्क उसका भाषा पे दो, नहीं तो में क्चहदी में ज्ञाकर कइंगा । ष्ठते कहा अरे दुए दस मत क्र । में धर्र्मशुद्धि हा ऐसा चोर का काम नहीं करता । द्रम प्रकारः वे दोनी लष्टये एए धर्माधिकारी के पाप जाकर और एक ट्रसरे करो दीप लगाते वे योते + इसके 'भनस्ता, लव शाल्पुरुपों ने उन से गपय कर करने को कड़ा तब तो पापदुदि दोला कि अड्टी यह न्याव ली डी नहीं | डेख पढ़ता ४ . इस विषय मे इस शोगों का साक्षी [ गदाइ ] दनदेवता है “वही दोनो में से एफ को चोर या साव कर देगा तब वे सब योले हो डॉ,सुमने व इत पच्छा हा 1 इस लोगों को भी इस विषय -( सुकहमे )-में बड़ा भायर्य है । करन प्रातःदफाल तुम शोनों को हम,लोगों के संग टस बन में चलना पाते 1 इतने मेँ पाप बुद्धि भपने घर लाकर भपन पिता से कहने नगा-कि है पिता] मैंने म्म्‌ बृहि का बहत धन सुरानिका ङ, बह तुषदारे कने सै एच लायगा नड़ीं तो रस लोगो यता प्राय श्री के खा अपयगा 1 वह बोला घुष! शीघ्र कहो को में करके




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