सुनो भाई साधों | Suno Bhai Sadho
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
481 KB
कुल पष्ठ :
44
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9
रानू कायन हाँ बेटा ! फदोरदास नें यहुत ज्ञान की थातें लिखों हैं । वे
पदा नहीं होते सो हिन्दू घोर घुसलमान 'प्रापस में सिर टकरा कर सड़ते-मरते 1
उन्होंने गमान में होगे पाली दुराइरपों फो मिटाने को यात कही है । वे जांति-
पनि नेद चुप्रा, श्रीर् दिषावे पलो कमो पसेद नहं करते । उन्होंने हिन्दुओं
सुमलमानों को धुराइयों पर शूच टदाट-फटयर लगायी है ।
चात-चोत हो रही है । इतने में मोहन फी नजर सामने से प्राने वते
सोगों की ध्रोर जाती है 1 मोहन देपता है फिः सेमा हरिजन श्रपनो भजन-मंडलौ
पे साथ ध्राया हैं । उसने राजू फाफा फो सेमा हरिजन फे प्राने फौ सुचना दौ 1
राजू काफा शीघ्र समा हरिजन की श्रोर दोड़ते हैं तथा उनको मंडली का
स्वागते फरते हं । सेमा मंश्लो षत गायः है । यह दोहे सुनाता है-
पंपड़ पत्थर जोरि पेः भराजिद लई चुनाय,
ता चदि मुल्ला यांग दे षया विरा हृश्रा खुदाय ।
पाहन पूजें हरि मिले तो मैं पुजूं पहाड़,
ताति या घाकी भलो, पीस णाय संसार ।
मूड मुडायपे हरि मिले सब फोइ लेय मुडाय,
वार चार ते मूड़ते भेड़ न बेकुठ जाय ।
दिन में रोजा रखत है; रात हनत है माय,
पट् खून वह् बंदगी, फंसे खुशी खुदाय ।
सुनने वालों का ध्यान फयीर के दोहों पर जाता है । श्रनुभव को गहराई
लिये हुए ये दोहे बहुत श्रच्छी बातें बताते हैं । दर
'राजू काका ने मोहन से कहा- देस वेटा! खेमा-मंडलो कितने स्रच्छे भजन ~+
है । कवीर दास के दोहो में दिखावा करने दालों को फटकार दी गयी है
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