सुनो भाई साधों | Suno Bhai Sadho

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Suno Bhai Sadho by शिवराज छंगाणी - Shivraj Chhangani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 रानू कायन हाँ बेटा ! फदोरदास नें यहुत ज्ञान की थातें लिखों हैं । वे पदा नहीं होते सो हिन्दू घोर घुसलमान 'प्रापस में सिर टकरा कर सड़ते-मरते 1 उन्होंने गमान में होगे पाली दुराइरपों फो मिटाने को यात कही है । वे जांति- पनि नेद चुप्रा, श्रीर्‌ दिषावे पलो कमो पसेद नहं करते । उन्होंने हिन्दुओं सुमलमानों को धुराइयों पर शूच टदाट-फटयर लगायी है । चात-चोत हो रही है । इतने में मोहन फी नजर सामने से प्राने वते सोगों की ध्रोर जाती है 1 मोहन देपता है फिः सेमा हरिजन श्रपनो भजन-मंडलौ पे साथ ध्राया हैं । उसने राजू फाफा फो सेमा हरिजन फे प्राने फौ सुचना दौ 1 राजू काफा शीघ्र समा हरिजन की श्रोर दोड़ते हैं तथा उनको मंडली का स्वागते फरते हं । सेमा मंश्लो षत गायः है । यह दोहे सुनाता है- पंपड़ पत्थर जोरि पेः भराजिद लई चुनाय, ता चदि मुल्ला यांग दे षया विरा हृश्रा खुदाय । पाहन पूजें हरि मिले तो मैं पुजूं पहाड़, ताति या घाकी भलो, पीस णाय संसार । मूड मुडायपे हरि मिले सब फोइ लेय मुडाय, वार चार ते मूड़ते भेड़ न बेकुठ जाय । दिन में रोजा रखत है; रात हनत है माय, पट्‌ खून वह्‌ बंदगी, फंसे खुशी खुदाय । सुनने वालों का ध्यान फयीर के दोहों पर जाता है । श्रनुभव को गहराई लिये हुए ये दोहे बहुत श्रच्छी बातें बताते हैं । दर 'राजू काका ने मोहन से कहा- देस वेटा! खेमा-मंडलो कितने स्रच्छे भजन ~+ है । कवीर दास के दोहो में दिखावा करने दालों को फटकार दी गयी है




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