रेडियो वार्त्ता शिल्प | Redio Vartta Shilp

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Redio Vartta Shilp by सिद्धनाथ कुमार - Siddhnath Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पेडियोनदाणजोज शर्त शिदति शरोपरतर नरा हि. वर छन पि श्ण विदा जा शत है । दार्णाग्रापा रवमाव नरेस और अनावर्प रहता भरो] गंध बहा शाप, हो थाररोीवा स्यमाव सरसे झौर मनोरजक होता हो हि । भाए पित्र हर साथ बटते रै, घोर सामय शातें भरते है । बाद होते सौरग होगी है रे दाग तेरसेदी बाएं जाननेदार् कोई मित्र थपने अनुभव सुनाने एगवा है, बभीनवभी गरभीर दिएयाती भी घर्षा ऐड देवा है, हो बया हर बर्गारिपे सोरगता का जाह है * बदापि सही । सो हमें सा िए प्रेपणीयप का ऐसा थदुमुत साधन उपलब्ध बरा दिया हू वि हम एव पदानपर ६ हे एप हो साथ जार ठगो स्यविषयाको धाने यनुमद गुना सदे, उठे धने विषरोग अवगत बरा गा । ऐेजिन चहू तभी श्रम्मद है, जद हम रेियोपे माप्यगकौ धेशाओङ्गो, उणकी पीमामो भोर सम्भावनाभोको रप । सलार दृश्य माप्यमये लिए लिखित रषनाञोकौ रेष्यिोकरे शय्य साप्यमसे प्रस्तुत बरनेसे ऐगा सही होगा । सगीनका आनन्द हम आयोसि ऐनेशा प्रयाग सही करते, पर आँसोकि लिए लिसित रचनाओदा भानन्द टम कानोको देना चाहते ह । हमारे यहाकी रेदियो-वार्ताओवी झगफलतावा यही रहस्य है । बो० बो० सी० के अनुभवी




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