भ्रामत पाथक | Bhramat Pathak

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Bhramat Pathak by सद्गुरुशरण अवस्थी - Sadguru Sharan Awasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हु प्रस्तावना ॥ श्रीशः पातु ॥ 'दुलादुद्धिजते सर्व: सर्वत्य सुखमीप्सितम्‌' षस जीवनयात्रा मे प्रत्येक प्राणी का मुख्य ध्येय सुख- प्राप्ति ही है। दुःख का पर्त्याम प्राणिप्रात्र दी को अभी है । जैसे जैसे जीच चिकास को प्रात दोताचखा ज्ञांता दै चैसे चसे दी दुःखनिवारण के उपायों केदष निकालने में विशेष विशेष उन्नति ध्राप्त करता इुआा दोखता है 1 किन्तु, रोग की ठीक ढीक विवेचना होने पिले जिस प्रकार उसका प्रतिक्रार करना अंधेरे में टकरें खाना दै, उसी प्रकार दुःख की ठीक ठीक परिभाषा दोने से पदले उसका निवारण करना भी असंभव दी है। दान धार में दुख की परिभाषा इस घ्रश्मार है-- 'प्रतिकूलतया 55त्मवेदनीय दुम्खम 1 जो अपने आपे को अच्छा न लगे, अथोत्‌ जो अपने बिलकुल डस्टा पढ़ता दो उसे दुःख कहते हैं । साव्यकारिकाकार श्रीयुत ईदवरदष्णं इस दुःख के तीन विभाग कस्ते हूं। झाधिमी तिक, आधिदेविक तथा आध्यात्मिक । दर्यनशास्र की मिक्ति की नोच इन तीन दुःखों के निवारणार्थं उपायधिशेप को सिदासा पर स्थित है । यधपि इन सब के उपाय दृष्टि




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