रेवती - दान - समालोचना | Ravati - Dan - Samalochana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तार अत नन्वा क्य चूषा २. चनीपषि दर्पण--मं» रूदिराज विरजचरणु शुषा कांस्य भूषणः राजवंध, कूच ( विद्ार } संर १९०९. २, सुश्रुत संहिता--दिन्दी सापानुवाद युक्त, पश्र श्यामलाल, शीकृप्गलाल, सन्‌ १८९६ २, वैफ शब्द सिन्पु--पर कदिगज भी दमेशचन्द रुष्व सन्‌ १८९४. ४, कारिकापली->मिद्धान्त मुक्ावली सिवा श्री शििनाय पंचानन मट्टाचाय रिरमिवा सन्‌ १९१२ प्र. शु. पि. परेम थे, कयदेद नियएडु--कर्ता-्ायुर्देदाधार्य पं. सुरेन्द्र मोदन छ, है, बैच कनानिधि (कलकत्ता), आार्य-दयानंदा ( युर्वदिक कलिज लादौर ता. २०० १९२८, प्र. संदइश्पंद लदइमणदाल, सैदमिट्रा थाजार, लादौर, ६, पदाथ चिस्ापणि---पक, मेश्पटे्र महापा मा, शी, सधशनतिंदजी ( उदयपुर 9, से, १५४० श्प सम्जन यंप्रालय से प्रशारित, स. शालिप्राम नियणडु--र्स, शानिपाम बैरय: ( गुरादाबाद ? प, रेमयजः भौष्टणदातः ( न्व ) से. १९६९, ८, बाभट--चरणदत प्रणी भ्यार्पा सहि थ. षार्डुरग जत्र ( तिष्व मुदणालय ) धम्दद्‌, शाशाण्ट्‌ १८४६ सम्‌ १९२५ रेवतीदान समालोधना के सम्पाइन में हपरोक्त पर्यों का वाधार लिया है । श्रत: रक्त घन्यों के सम्पाइक एवं मकासकों शा झाभार प्ररट किया करता दे [ सेखक--




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