भिखारीदास द्वितीय खण्ड | Bhikhari Das Part 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
390
श्रेणी :
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No Information available about विश्वनाथप्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५)
लघु (5) ॐ हि नद का सवेत परायः श्राया है | दो गुरु (55) को कणं श्र
चार लघु (00) को 'द्विज या चपर कहा है । बीस मात्रा के 'टीपकी' छुद का
लक्तण कग मवा र दीपद दीपकिय कहत कवब्रिजन है' | यहाँ द्रं ठप में दीप
नामक दम मातरा के दुद से तासर्य है । इस नोरस प्रसग का श्रधिक विस्तार
करना निष्प्रयोनन है। जिनेकी पिंगल में श्रमिरुधि दो दावे क किसी
सस्कस्ण से इस सत्करण को मिला देखें ।
सबसे अधिक समय लिया काव्यनि्ुय के चित्रनोत्तर या चित्रालकार ने ।
< शँ उल्लास ते एक छद श्रर्थात् ३२वें का ठीक ठीक श्रथ॑ निकालने में
सुमे १६ दिने तक़ दिवागत्रि मन्तिष्क को एकाग्र करना पड़ा । मेरी घोषणा है
कि दसम ठीक श्रर्थ पर परा में किसी को नहीं लगा है |
काव्यनिणुंय का मूल पाट छपर चाने के ग्रनतर मेरे व्रनभापाबिदू परम
लित दास सगादित महाकाय कात्यनिंणंय प्रकाशित हुआ । बडी श्राशा से
मै ने उसकी श्रोग शाथ बढाया, पर बीर कवि के वेलवेडियर प्रेस बाले सरण
में जो श्रर्थ दिया गया है वही नाममात्र के देरफेर से वहाँ भी मिल्ला । बहुमूल्य
समय इतत साथारण से गोरवधधे मे लगाना बेकार है पर मन नहीं मानता,
कतब्य मानने नहीं देता ।
काव्यनिर्णीय का वह छट य उडुतत किया जाठा है--
को गन सुखद; कादे अंगुली सुलक्तती है;
देत कहा घन; कैसो विरद्दी को चंदु है।
जाले स्यो तुका, कदय लघु नाम धरे, कदा
सृत्य मेँ त्रिचरै, कहा फो व्याध फंटु है ।
कटा दै पचानि फटे भाजन मे भात, स्यो
योालावै कस भ्रातु, कहा इप बोलु महु है ।
भू पै कौन मावै, खग-देले को नठाचै, प्रिया
फेरे कहि फा कटा रोगिन फो वटु है ॥
श्रय तिलकः कफे (सर मे हतना दिया दै--ध्यगन, जव, यल,
जवाल, लव, जलवा, वाल, लव, लवा, लवा, लवा, यत्रा, बाज, वाल, लवाय,
घायल । उक्तं बवित्त के उत्तरौ को स्य करने के लिए स्वयम् दत्त ने झागे
एक टदा ही दिया है
खचि त्रिकोन यलवादि लिख, पठौ अथं मिलि ज्याहिः।
उतर . सर्वतोभद्र यहः वहिरलापिका योहि॥
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