वेदही वनवास | Vedahi Vanvas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ ) सैं काशी विश्वविद्यालय सें पहुँच गया था । शिक्षा के समय योग्य विद्यार्थी-समुदायः ईशर अथच संसार-सम्बन्धी अनेक विपय उपस्थित करता रहता था 1 उनमें कितने श्रद्धा होते, कितने सामयिकता के रंग में रंगे शास्त्रीय और पौराणिक विषयों पर तरह तरह के तकं वित्तकं करते । मैं कक्षा से तो यथाशक्ति जो उत्तर उचित समझता दे देता । परन्तु इस संघप से मेरे हदय में यह विचार उत्पन्न हुआ कि इन चिपयों पर कोई पथ-्रंथ क्यों न छिख दिया जाये । निदान इस विचार को मैंने काय्यं में परिणत किया और सामयिकता पर दृष्टि रखकर मैंने एक विशार अंथ छिखा । परन्तु इस श्रंथ के लिखने में एक युग से भी अधिक समय छग गया । मैंने इस अंथ का नाम 'पारिजात” रखा । इसके उपरान्त “बेदेही-वनवास' की ओर फिर दृष्टि फिरी । परमात्मा के अनुग्रहं से इस काय्यं की भी पूर्तिं हुई । आज “वैदेदी-वनवासः छिखा जाकर सहृदय विद्धलनो ओर दिन्दी-संसार के सामने उपस्थित है । महाराज रामचन्द्र मय्योदा पुरुषोत्तमः खोकोत्तर-चरित ओर आदश नरेन्द्र अथच मदिपारु है, श्रीमती जनक-नन्दिनी सती-शिरोमणि ओर छोकःपूज्या आय्ये-वाला ह । इनका आदर्श, आर्य्य-संस्छति का सवसव है, मानवता की मह- .नीय विभूति दै, ओर है सर्गाय-सम्पत्ति-सम्पन्न । इसि इस अथ मे इसी रूप मे इसका निरूपण हआ है। सामयिकता पर दृष्टि रखकर इस भथ की रचना हई दै, अतएव इसे वोधगम्य ओर ` बुद्धिसंगत बनाने की चेष्टा की गई है ! इससें असंभव घटनाओं,




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