वेदही वनवास | Vedahi Vanvas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९ )
सैं काशी विश्वविद्यालय सें पहुँच गया था । शिक्षा के समय योग्य
विद्यार्थी-समुदायः ईशर अथच संसार-सम्बन्धी अनेक विपय
उपस्थित करता रहता था 1 उनमें कितने श्रद्धा होते, कितने
सामयिकता के रंग में रंगे शास्त्रीय और पौराणिक विषयों पर
तरह तरह के तकं वित्तकं करते । मैं कक्षा से तो यथाशक्ति जो
उत्तर उचित समझता दे देता । परन्तु इस संघप से मेरे हदय
में यह विचार उत्पन्न हुआ कि इन चिपयों पर कोई पथ-्रंथ
क्यों न छिख दिया जाये । निदान इस विचार को मैंने काय्यं
में परिणत किया और सामयिकता पर दृष्टि रखकर मैंने एक
विशार अंथ छिखा । परन्तु इस श्रंथ के लिखने में एक युग से
भी अधिक समय छग गया । मैंने इस अंथ का नाम 'पारिजात”
रखा । इसके उपरान्त “बेदेही-वनवास' की ओर फिर दृष्टि फिरी ।
परमात्मा के अनुग्रहं से इस काय्यं की भी पूर्तिं हुई । आज
“वैदेदी-वनवासः छिखा जाकर सहृदय विद्धलनो ओर दिन्दी-संसार
के सामने उपस्थित है । महाराज रामचन्द्र मय्योदा पुरुषोत्तमः
खोकोत्तर-चरित ओर आदश नरेन्द्र अथच मदिपारु है, श्रीमती
जनक-नन्दिनी सती-शिरोमणि ओर छोकःपूज्या आय्ये-वाला ह ।
इनका आदर्श, आर्य्य-संस्छति का सवसव है, मानवता की मह-
.नीय विभूति दै, ओर है सर्गाय-सम्पत्ति-सम्पन्न । इसि इस
अथ मे इसी रूप मे इसका निरूपण हआ है। सामयिकता पर दृष्टि
रखकर इस भथ की रचना हई दै, अतएव इसे वोधगम्य ओर
` बुद्धिसंगत बनाने की चेष्टा की गई है ! इससें असंभव घटनाओं,
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