पञ्चमकर्मग्रंथ | Panchamakarmagranth

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Panchamakarmagranth  by कैलाशचन्द्र - Kailashchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्वकथन १३ कालिजोंके पाठ्यक्रममें भी हुआ है जहाँका वातावरण असाम्प्रदाधिक होता है | दूसरी दलील यह है कि अत्र साम्प्रदायिक वाङ्मय सम्प्रदायकी सीमां लाघकर दूर दुरतक पहुंचने खगा है । यहोँतक कि जर्मन विद्वान्‌ ग्लेञ्चनप्‌ जो ““डेनिस्मस”-जेनदर्दन जैसी सर्वसंग्राइक पुस्तकका प्रसिद्ध लेखक है, उसने तो दवेताम्बरीय कर्मग्रन्थोंका जर्मन भाषामे उस्था भी कमीका कर दिया है ओर वह उसी विषयमें पी० एच० डी० भी हुआ है । अतएव मैं इस जगह थोड़ी बहुत कर्मतत्व और कर्मशास्त्र सम्बन्धी न्र्चा ऐतिहासिक दष्िसे करना चाहता हू । मैंने अभी तक जो कुछ वैदिक और अवैदिक श्रुत तथा मार्गका अवलोकन किया है और उसपर जो थोड़ा बहुत चिचार किया है उसके आधारपर मेरी रायमे कमंतत्वसे सम्बन्ध रखनेवाली नीचे लिखी वस्तुस्थिति खास तोरसे फलित होती दै जिसके अनुसार कम॑तत्वविचारक सब परम्प राओंकी श्ंखला ऐतिहासिक क्रमसे सुसब्नत हो सकती है । परिखा प्रश्न कर्मत्व मानना या नहीं और मानना तो किस आधार पर, यह था । एक पक्ष ऐसा था जो काम और उसके साधनरूप अर्थके सिवाय अन्य कोई पुरुपाथं मानता न था । उसकी दृष्टिमें इदलोक ही पुरुषार्थ था । अतएव वह ऐसा कोई कर्मतत्व माननेके लिए. बाधित न था जो अच्छे बुरे जन्मान्तर या परलोककी प्राप्ति कसनेवाला हो । यही पश्च चार्वाक परंपराके म'मसे विख्यात हुआ । पर साथी उस अति पुराने युगमें भी ऐसे चिंतक थे जो चतलाते थे कि मृत्युके बाद जन्मान्तर भी है#। इतना हीं नहीं # मेरा ऐसा अभिप्राय दे कि इस देश में किसी भी बाइरी स्थान से भ्रवतक धर्म या याज्ञिक मामं भाया और वह ज्यों ज्यों फैठता गया त्यों त्यो इस देशमें उस प्रवर्तेक धर्मके आनेके पहलेंसे दी विद्यमान निवर्तक धर्म अ- चिकाधिक बल पकढ़ता गया । याज्धिऋ्र प्रवर्तक घर्मकी दूसरी शाखा इरानमें




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