सूरज बाई | Suraj Bai

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Suraj Bai by लाला सीताराम - Lala Sitaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ खरज बाई वच्ष दोड़ौ दौड़ी रन क पास गथौ ओर उसका आंचल पकड कर उससे कने लगौ - “ रानौ जौ तालाब पर्‌ मत जाना | सूरण ने कद्दा “मेरा आंचल छोड दे” । बद्वा नै आचचल छोड़ दिया ओर सूरज उस बुठिया के कहने पर कान न दे कर स्पनों सोत के छाथ में छाथ ढाल पोखरी क्ती ओर चलद | वद्धा जकार कड दोनो किनारे पर षड हो कर पानौ कौ खोर मुकं । सूरज को अपने मदमो कौ स॒न्दश्ता देख पदौ । पानौ दरयनौ की) तरह चमक रहा था | सूरज पानी में सपने गदनों की परकाद रेख र्न थी कि इतने में उसकी सौतने पौछे से उसे अचानक रसा ला हिया कि वद धड़ाम से पानी में शिर पड़ी और उब गयौ | खूरज को इस तरह पानौ मे डवा कर उस के सौत अपने सकल में भाग मयौ । रात बौतने पर जत सवेराङव्रा तव अमन (खिड़की खोल सूरज कौ सोत ने उस अर माका जद्धां उह सरजं को डुबा आई थी । वच्दां बक् देखती क्या हैं कि पौले रंग के सरल सुखी मल का शक ऊंचा पेड़ खड़ा ङ | ६ राजा ने सुश्ज को मल सें न देख कर उदास होकर उसे चारों योर बहुत ढ ठुवाया, घर उसका कष्टौ भौ पता ने अला । तब वष्ट अपनी पच्षिलो रानी के मास गया और उससे बोला, ५ स्ूरजबाई कदा दे › रो कसाइन । जाग पड़ता हैं तूने उसे मार डाला हि।*




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