कांटे | Kante

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Kante by कृष्ण चंदर - Krishna Chandar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वतंत्रता का अथ १९१ पर जीता है उसका समाप्त हो जाना ही अच्छा है। इस प्रकार मजदुरों को मिलें मिल गई हैं, किसानों को ऊमीनें, विद्यार्थियों को स्कूल 'और कालेज मिल गये हैं. । उनकी फ्रीसें तो बम्बई में दुगुनी हो गई हैं. किन्तु सुना है. यहाँ बिल्कुल मुझाफ़ हो गई हैं। में देख रहा हूँ कि स्वाघीनता आ जाने से आप लोग बड़े मज़े में हैं । मुमे सेक्रेट्री ने बताया कि पिछले वर्ष जहां हमारा जल्सा हश्राथा इस बार हमें वह हॉल नहीं मिला । एक अनाथालय बड़ी कठिनाई से, बढ़ी विनय-याचना के बाद प्राप्त हुआ । और यदि स्वाघीनता का यद्दी चलन रहा तो अगले वर्ष यह अनाथालय भी नहीं मिलेगा और हमें अपने जल्से खुले खेतों तथा मजदूरों की बस्तियों में करने पड़ेंगे । कम से कम में तो इसे बहुत अच्छा समभू गा । और किसी तरह न सही, इसी तरह सही, लेखक लोग इधर श्रापकी ओर ठकेले जा र्टेहैँ। जो साहित्यकार इस समय जनता के लिए लिखता है उसके लिए भी ऊपर के लोगों के सारे द्वार बन्द हो रहे हैं। यहद अच्छा है । फिर वह अपने भाई बन्घुओं में झा जायेगा । फिर उसे ज्ञात होगा कि जिन लोगों के मध्य वह अब तक भटकता रहा, वे यू तो बड़े अच्छे कपड़े पहनने वाले थे, मोटरों में सैर करने वाले थे, बैंकों ्नौर मिलों, समाचार-पत्रों और कई एक सिनेमाओं के मालिक ये, किन्तु उनके हृदय में मानवता की अम्नि भर चुकी थी । काले बाज़ार के रुपये ने उन्हें, झन्घधा कर दिया और अव वे इस श्रालोक को नहीं देख सकते जो मजदूरों की चौलों और किसानों की भोंपड़ियो च




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