कांग्रेस का इतिहास | Congress Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
750
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।
विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन् १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन् १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन् १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सा पी
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अन्तरात्मा के आदेश आदि सम्बन्धी स्वतन्त्रता के मौलिकं धिकारो की घोषणा
कर दी गई है। यह भी निर्दिष्ट कर दिया गया है कि कल-कारखानो में काम
करनेवालो के लिए काम की स्वास्थ्यप्रद परिस्थिति, काम के मर्यादित घण्टे, आपसी
कगडो के फैसले के लिए उपयुक्त सगठन और वुढापे, बीमारी व बेकारी के आर्थिक
सकटो से सरक्षण तथा मजदुर-सघ बनाने के उनके अधिकार को कायम रखने के
रूप मे उनके हितो का खया रक्खा जायगा । किसानो को हसने आदवासन दिया
है किं यह् छगान-मालगुजारी में उपयुक्त कमी कराकर और अनुत्पादक मीनो की
खगन-मादगुजारी माफ कराकर तथा छोटी-छोटी .जमीनो के मालिको को उस
कमी के कारण जो नुकसान होगा उसके हिसाव से उचित और न्याय्य छूट की
सहायता देकर यह उनके खेती-सम्बन्धी भार को हरुका करेगी ! खेती-बादी से
होनेवाली आमदनी पर, उसके एक उचित न्यूनतम परिमाण से ऊपर, इसने कमागत
कर कछगाने की सी व्यवस्था की ह । साथ ही एक निरिचत रकम से अधिक आमदनी-
वाली सम्पत्ति पर उत्तरोत्तर बढता जानेवारा चिरासत का कर कगाने, फौजी व
मुल्की शासनं के खर्चे मे भारी कमी करने ओर सरकारी कर्म॑चारियो की तनस्वाह्
५००] महीने से ज्यादा नं रखने के छिए का हँ । इसके अलावा एक आर्थिक और
सामाजिक कायेक्रम सी प्रस्तुत किया गया है जिसमे विदेकी कपडे का वदिष्कार,
देरी उद्योय-घन्धो का सरक्षण, दारान तथा अन्य नशीली चीजों का निषेध, बडे-वड़े
उद्योगो पर सरकारी नियत्रण, कारतकारो का कजंदारी से उद्धार, मुद्रा गौर विनिमय
की नीति का देवा के हित की दृष्टि से संचालन गौर राप्ट्र-रक्षा के लिए नागरिको
को सैनिक शिक्षण देने का निर्देदा है ।
काग्रेस के अन्तिम अधिवेशन में, जोकि अक्तूबर १९३४ मे वस्वई मे हुआ
था, कौसिल-प्रवेश की नीति को स्वीकार कर लिया गया है शर देश के सामने
र्वनात्मक कारय॑क्रम रक्खा गया है जिसमें हाथ की कताई-बुनाई को श्रोत्साइन एव
पनर्जीवन देने, उपयोगी ग्रामीण तथा अन्य छोटी दस्तकारियों ( गृह-उद्योगो ) की
उन्नति करने, आर्थिक, शिक्षणात्मक, सामाजिक एवं स्वास्थ्य-विज्ञान की दृष्टि से
ग्रामीण-जीवन का पुनर्निर्माणं करने, जस्पृश्यता का नाञ्च करने, अन्तर्जातीय एकतां
की वुद्धि करने, सम्मू्णं मच-निषेध, राष्ट्रीय-दिक्षा, वयस्क स्त्री-पुरुषों में उपयोगी
ज्ञान का प्रसार करने, कल-कारखानों में काम करनेवाले मजदूरों व खेती करनेवाले
किसानो का सगठन करने सौर काग्रेस-संगठन को मजबूत बनाने की वाते भी हूँ ।
कॉप्रेस-विधान का सशोघन करके, नये विधान मे, भरतिनिधियो की सख्या घटाकर
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