प्रेमपन्थ (योजन २ ) | Prem Panth  (Yojan 2)

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Prem Panth  (Yojan 2) by गोविन्दजी देसाई - Govindji Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूत्यू और अभुगत्व ९ (ट) जीवन मृ्युकौ तैयारो टै) भगवान जाने जैसा बयों होता है, लेकिन यह सच है कि जिग अनिदार्थ और भव्य घटनाका विचार करते दही हम कपि अटते ह । जीर बुछ नहीं नो भगवानमे डर कर चलनेवाले प्रत्येक मनुप्यके लिअ पिछले जीवनम अधिक अच्छे जीवनकी तयारीके रूपम भी मृत्यु भव्य है) { मीरावद्नको० ) (ट) मृत्य सज्जनको अधिक अच्छी ददतां पहुचनिी हैं और दुरजेनके लिभे कल्याणकारी दुटकारेको काम कसती दै -- असी दढ धडा हमारे मनम हो, ततौ मरके समय सन्तोप रहता है । (मीरावहनको ०) (ण) अीहवस्की छपा ओीद्विस्का काम करनेमे भाती द । तुमको आदवरा काम कना है । कमी चरवा चलाते हो? चरखा चलाना सबसे बड़ा यज्ञ है। सेते रोते भौ चरा चाओ! (श्रौ अनन्द दिमोसणीको युपदेश, मूल हिन्दी; १५-१०-४४)




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