भारतीय नाट्य परम्परा और अभिनयदर्पण | Bharatiy Natya Parampara Aur Abhinayadarpan

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Bharatiy Natya Parampara Aur Abhinayadarpan by वाचस्पति गैरोला - Vachaspati Gairola

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाटय साहित्य (तौति) के पयोग बै दिषु महामुनि गरत क दे दिया (. . त स्वहस्वल्यिन मुनिर्मगवान्‌ व्यसृजदूमगवतो भरतस्य तीयत्रिकपरुनघारस्य) । यद्‌ प्रयन्व रचना महामुनि भरत को इसलिए दी गयी हि वे अप्सराओं के साथ उसका बभिनय करेंगे (स किल भगवान्‌ भरतस्तमप्सरोभि प्रयोगयिप्यतीति) । महाकवि दालिदास वीर भवभूति के सतिरिकत इस सन्दर्भ में आचार्य अभिनवगुप्त की अभितव- भारती, वाचार्यं नन्दिकैदवर कै सभिनयदर्पण ओौर वाचार्य घनजय के दद्ाटपद का नाम उल्टेखनीय ३। अभिनवभारती, नाट्श्नास्न का व्याख्या ग्रन्य है । इस दुष्टि से उसे उल्टेखा कौ प्रामाणिकता निविवाद है । साच्यं जभिनवगुप्त न अपने ग्रन्यमे एकाविक् वार भर्त , भरतादिभि बौर भर्तागम नादि दब्दा का प्रयोग किया हैं। उन्होंने भाचार्य भरत द्वारा निर्दिप्ट कुछ पूर्वाचार्यों के मतों (नामा का नहीं) का भी उल्लेख विया है। इसके साय ही उन्होंने मरत के परवर्ती नाटयाचार्यी के नामा तथा सिद्धान्ता को भी उद्त किया है। उनकें इन उल्रेंसो स स्पप्ट होता हूँ वि नाटघशास्न के निर्माता वा नाम भरत था और उनके शिप्य प्रधिप्यो द्वारा प्रतित परम्परा को भरनादिमि के नाम से वहा गया। इसी प्रदार के अन्य उ रख भी आचार्य मरत और उनके चास्तं के परिचायव हैं। अभिनवभारती वै भतिरिक्त आचाय नत्दिकेश्वर के अभिनयदर्पण मे भरत नाम की वस्तुस्थिति को अधिक स्पप्टता स व्यक्त किया गया है। अभिनयदपंग में उल्लिखित भरत शद्द स्पप्टत व्यक्ति विशेष का योर है। नाटपयास्यर की उत्पत्ति और उसकी परम्परा के सम्दन्व में आचार्य नत्दिकेदवर ने लिखा है कि यह नाटयवेद प्रजापति ब्रह्मा से भरत कौ मिटा मौर मस्त ने नप्सरायो तथा गन्वर्वो के सहयोग से सरव प्रयम उसका प्रयोग नटराज गकर कै स्रामे प्रस्तुत त्रिया। तदनन्सर्‌ मुनियो (भरत रिष्यो) दवारा यह्‌ नाटयवेद मानवी मुष्टि मे प्रचरित हमा । उस्र वाद परम्परा दारा यद्‌ नाटयक्टा निरन्तर मागे बढ़ती रही। रगाधिदेवता की स्तुति में एक स्थान पर आचार्य नन्दिकेश्वर ने उसे “नाट्घाचार्य मरत की नाटय- परम्परा कौ ब्रिवानृ' (भरतङ्गलमाग्यकचिदे ) नाम स कटा है । उन्दति एकाचिद् वार नाटधदरास्न को भरतागम नाम से लिया है भौर अन्य आचार्यों के मना के सन्दर्भ में भरतागमकोविद, भरतको विद, भरतागमदर्यी भर भरतागमवेदी आदि दाद्दा वा प्रयोग किया है। इन उल्लखा मे स्पप्ट है वि उन्होंने नाटयशास्नकार भरत को और उनकी परम्परा के अन्य लाचार्यों को अलग-अलग नाम से उल्ठेव दिया है। उन्होंने अपने अभिनयदर्पण मे बुध, वुधोत्तम, नादश्राचायं, नाटचन्चास्नविश्ारद, नाटयविद्‌, नाटश्रकोविद्‌, नाटघक्लानिन, नाट्- तश्र विचारक, नाटचकमेविदारद, नृत्तकोविद मौर नत्तदास्मविदापरद आदिं शब्दा का भी उक्ष दिया है। अभिनयदर्पण के इन उल्टेयो से सिद्ध होता है कि आचायें भरत का अपना स्वतव्र व्यक्तित्व या भौर उनकी परम्परा, वै प्रवर्तेक परवर्ती नाट्याचार्यों ने उनवी मान्यताओआ को निर्ध्ान्त रुप में उद्धत रिया ५ दस सम्बन्ध में अभिनवभारतों और अभिनयदर्पण के अतिरिक्त आचार्य धनजय के ददाटपक (१1२) वे उत्टेमा एर भी विचार करना अनुपयुक्त ने होगा। आचार्य धनजय ने दशरूपद के आरम्मिक सगठ रष ्




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