महामना मालवीयजी | Mahamana Malaviyaji
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
217
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श महामना माख्वीयजी +£
चिधाका कुछ धन उन्हेंनि ननिदालसे भी पाया
पवी भ
था। चोवीसर पच्चीख चप॑की नई जवानीमे दी वे
स्यास् चन गप और भागवती कथा फदनी प्रारम्भ
परम मागवत पण्डित प्ेमधर चतुर्वेदी पुत्र पण्डितं ब्रननाय
ग्यासजी । माल्वीयजी ईन्दीके सीसरे पत्र ये ।
की ) छडील खुन्दर देहके साथ-साथ उन्हें मघुर
कण्ठ भी मिला था। जव योलते थे तो मानो मिश्री
घोलते थे। पक तो मीठी योती भौर फिर चज
भाषा-फोयल भर घसन्त-चस खुननेवाले रद
हो जाते थे । रीवाँ, दर्भज्ञा और काङीके महदा-
राज्ञार्भोनि उनका बढ़ा सम्मान किया । कितने ही
रजन्नयाई इन्दें गुरु मान चुके थे बे वंशी घजाकर
जय गाते थे--
गावो मधुरा गोफ भुरा य्टि्मधुरा खषटिम॑धुरा ।
दरिति मधुरं कलित मधुर मधुराधिपतेरखिलं मधुर ॥
हृद्य मुर गमन मधुर दचन मधुर चिद मधुर ।
चसिर्ते मधुर चकित मधु प्रमित मधुरं दिति पुर ॥
भधर सपुरं यदनं मधुरं नयनं भुर वघ्नं मधुरं ।
हसितं पुरं कलितं मधुरं मधुराधिपतेरदिरं मधुरं ५
ते मधुका खद सोता बद्व या क धरोवा-
दे
(९
गण मन्वमुख्ध होकर नाच उठते थे। उनकी कथा
भावमय होती थी--कमी रखते ये कभी सेते ये-
कभी चेश थासो कमी शान्ति थी! जाने पदता
` था किं नाट्य-शाखरके सारे रस परिडत श्जनाथ
| व्यासजीके रुपमें साकार होकर चिराजमान हैं । नये-
डर नये इटान्तेसि सजाकर शान्त, गम्भीर, सन्मय भावसे
| जब वे भगवानकी कथाफा रस याँठते थे उसका
घर्णन कौन कर सकता है--गिया यनयन, नयन-
# चिनु यानी।
पे मीटातो बोलते षी ये, पर सन्तोषी भी पूरे
ये। उन्दने कभी किसके मागे हाय नदी फैलाया ।
जो कुछ कथापर चढ़ गया उसे तो स्वीकार कर
लिया, पर किसीसे दान नहीं लिया। सदुभाषिताने
क्रोघको ओर खन्तोषने लोभको उनके पासं फटकने
न दिया और ्सोल्िये इतने यदे परिवास्को केकर
भी चे सुखी रहे । थे पण्डितप्झ ढज्ञका कठीदार
अज्ञा पहनते और सौगोदिया सोपी या पगढ़ी
सिय्पर रखते थे। गलेमें दुपट्टा पड़ा रदता, जिसपर
जाके दिनम एक दुला दार सिया करते थे।
` याद्वरसे भानेपर बे घासे कपे उतारकर एक ओर
श्स्र दिया करते थे । पक चार ऐसा हुआ कि थे
पाठ फर रदे थे । अदानक पक अंग्रेज उधरसे आ
निकला ओर उसने इनसे कठ पश्च किया ! ये मौन
भावसे पाठ करते रहें, उसका कुछ उत्तर न दिया।
इसपर उसने न्द यतसे छू दिया । पे तत्काल धरः
चापस साद ओर गोवर भलकर खथैल स्मान
करके फिर पश्चगव्य, पश्चासतं झदण करके उन्हें ने
अपनी शुद्धि की । इतने नेमके पके ये परिडित
अजनाथजी 1
सौमाग्यकी यर्पा जब होने लगती है तो घद
' मरपूर होती दे । पण्डित' घ्रजनाथ व्यासजींका
विवाद सदजादपुरमं छमा 1. सौभाग्यसे - इनकी
धर्मपल्ली श्रीमती मूनादेवीजी «यड़ी +सर्ख समीर
कोमल षदयर्वाठी मिलीं । “अड़ोल-पहोलकी जो
सेवा चन पड़े कर देना और संघसे प्रेमसे योलकर'
यशी दौन्तिसे घरे घर-भरका कपे देखना यदी
उनका काम था । वे किसी को दुली वेदी
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