महामना मालवीयजी | Mahamana Malaviyaji

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Mahamana Malaviyaji by सीताराम चतुर्वेदी - Sitaram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श महामना माख्वीयजी +£ चिधाका कुछ धन उन्हेंनि ननिदालसे भी पाया पवी भ था। चोवीसर पच्चीख चप॑की नई जवानीमे दी वे स्यास् चन गप और भागवती कथा फदनी प्रारम्भ परम मागवत पण्डित प्ेमधर चतुर्वेदी पुत्र पण्डितं ब्रननाय ग्यासजी । माल्वीयजी ईन्दीके सीसरे पत्र ये । की ) छडील खुन्दर देहके साथ-साथ उन्हें मघुर कण्ठ भी मिला था। जव योलते थे तो मानो मिश्री घोलते थे। पक तो मीठी योती भौर फिर चज भाषा-फोयल भर घसन्त-चस खुननेवाले रद हो जाते थे । रीवाँ, दर्भज्ञा और काङीके महदा- राज्ञार्भोनि उनका बढ़ा सम्मान किया । कितने ही रजन्नयाई इन्दें गुरु मान चुके थे बे वंशी घजाकर जय गाते थे-- गावो मधुरा गोफ भुरा य्टि्मधुरा खषटिम॑धुरा । दरिति मधुरं कलित मधुर मधुराधिपतेरखिलं मधुर ॥ हृद्य मुर गमन मधुर दचन मधुर चिद मधुर । चसिर्ते मधुर चकित मधु प्रमित मधुरं दिति पुर ॥ भधर सपुरं यदनं मधुरं नयनं भुर वघ्नं मधुरं । हसितं पुरं कलितं मधुरं मधुराधिपतेरदिरं मधुरं ५ ते मधुका खद सोता बद्व या क धरोवा- दे (९ गण मन्वमुख्ध होकर नाच उठते थे। उनकी कथा भावमय होती थी--कमी रखते ये कभी सेते ये- कभी चेश थासो कमी शान्ति थी! जाने पदता ` था किं नाट्य-शाखरके सारे रस परिडत श्जनाथ | व्यासजीके रुपमें साकार होकर चिराजमान हैं । नये- डर नये इटान्तेसि सजाकर शान्त, गम्भीर, सन्मय भावसे | जब वे भगवानकी कथाफा रस याँठते थे उसका घर्णन कौन कर सकता है--गिया यनयन, नयन- # चिनु यानी। पे मीटातो बोलते षी ये, पर सन्तोषी भी पूरे ये। उन्दने कभी किसके मागे हाय नदी फैलाया । जो कुछ कथापर चढ़ गया उसे तो स्वीकार कर लिया, पर किसीसे दान नहीं लिया। सदुभाषिताने क्रोघको ओर खन्तोषने लोभको उनके पासं फटकने न दिया और ्सोल्िये इतने यदे परिवास्को केकर भी चे सुखी रहे । थे पण्डितप्झ ढज्ञका कठीदार अज्ञा पहनते और सौगोदिया सोपी या पगढ़ी सिय्पर रखते थे। गलेमें दुपट्टा पड़ा रदता, जिसपर जाके दिनम एक दुला दार सिया करते थे। ` याद्वरसे भानेपर बे घासे कपे उतारकर एक ओर श्स्र दिया करते थे । पक चार ऐसा हुआ कि थे पाठ फर रदे थे । अदानक पक अंग्रेज उधरसे आ निकला ओर उसने इनसे कठ पश्च किया ! ये मौन भावसे पाठ करते रहें, उसका कुछ उत्तर न दिया। इसपर उसने न्द यतसे छू दिया । पे तत्काल धरः चापस साद ओर गोवर भलकर खथैल स्मान करके फिर पश्चगव्य, पश्चासतं झदण करके उन्हें ने अपनी शुद्धि की । इतने नेमके पके ये परिडित अजनाथजी 1 सौमाग्यकी यर्पा जब होने लगती है तो घद ' मरपूर होती दे । पण्डित' घ्रजनाथ व्यासजींका विवाद सदजादपुरमं छमा 1. सौभाग्यसे - इनकी धर्मपल्ली श्रीमती मूनादेवीजी «यड़ी +सर्ख समीर कोमल षदयर्वाठी मिलीं । “अड़ोल-पहोलकी जो सेवा चन पड़े कर देना और संघसे प्रेमसे योलकर' यशी दौन्तिसे घरे घर-भरका कपे देखना यदी उनका काम था । वे किसी को दुली वेदी




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