तत्त्वविचार दीपक | Tatvavichar Dipak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रञुवन्ध ।
दी दोय कुरूप तनकारी ।
तो भी घर सोदावना हारी ॥१५॥
जात जमात कुटंब सोहांवे ।
पुतत परिवार मले नीपाने ॥
रुव प्रहलाद् ममीस्थ जसे ।
नारि नर नीवाबत पेसे ॥१६॥
विनं तिरिया जो विधूर होने।
तो नात जात सकल बगोने ॥
यातं सब कोई नारि लाने ।
संसारं सार सुख भोगाये ॥१७॥
इस हेतु नारि सब कं प्यारी ।
दमति पूनि अस्त वारी ॥।
नारिं नाहि सो गर कारी ।
तजे विवेकी हियै विचारी ॥१८॥
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