तत्त्वविचार दीपक | Tatvavichar Dipak

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Tatvavichar Dipak by स्वामी शिवानन्द - Swami Shivanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रञुवन्ध । दी दोय कुरूप तनकारी । तो भी घर सोदावना हारी ॥१५॥ जात जमात कुटंब सोहांवे । पुतत परिवार मले नीपाने ॥ रुव प्रहलाद्‌ ममीस्थ जसे । नारि नर नीवाबत पेसे ॥१६॥ विनं तिरिया जो विधूर होने। तो नात जात सकल बगोने ॥ यातं सब कोई नारि लाने । संसारं सार सुख भोगाये ॥१७॥ इस हेतु नारि सब कं प्यारी । दमति पूनि अस्त वारी ॥। नारिं नाहि सो गर कारी । तजे विवेकी हियै विचारी ॥१८॥




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