श्री ध्यानकल्पतरू | Shri Dhyanakalptaroo

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Shri Dhyanakalptaroo  by अमोलक ऋषि - Amolaka R̥shi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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टर हे + ५ अश्यभ ! प्रथम शाखानआर्वध्यान * ध्यानकत्प्तरुकी अजकर्मीणका विपय मनुछां चरणम्‌ भमिफा स्न्‍प और शाखा ध्पान हा] . प्रधम प्रतिशाखा आरतष्यान केमेंव्‌ | प्रथम पत्र-भनिष्ट सयोग दिपेषपत्र इष सयोग वृतीय पन्न रोगोदय घतुय पतन्न मोगिच्छा बम विषय _ ३ प्ृर८। घिपय १ पृष्ष और फ़छ २ उपशासा शुभष्यान है प्रथमशाखा घ्यान मूठ ४ पचलब्यी का खरूप ५ द्विताय उपशाखा शुभ ध्यानविधी ५ प्रथम पत्र के ९ द्वितीय पत्र द्रव्य ७तुतिय पतन्न काछ पत्र माव ४.. , ११ शुम घ्यानस्य फल,,.... *« क्> दितीय शाखा भात॑ष्यानके उक्षण१३ तातिय शाखा धर्मष्यान प्रथम पत्रु-कद॒शया दितीय- पत्नन्सोयणपा तृततीय- पत्र-तिप्पणया .. चतथ पत्र वि्वणया जार्तेघ्यानके पुष्पफल द्वितीय शाखा रेद्ष्यान « प्रथम प्रातिशाखा रौद्गध्यानके मेंदर ९ प्रभमपत्न इिशानु घघ द्वितिष पत्र-मुपादुबन्ध तृतिष पन्न तस्करानुबन्ध .... चतुथपन-श्वरक्षण द्वितीय प्रतिशाखा-रीद्रध्यानोंके क्षण ४ २ < प्रथम पत्र-उषण दोष द्वेतताय-पत्र बहुल दोष तुत्तिप पत्र भरज्ान दोव चतु्च पत्र अरणात दोष योपशमता २२ ॥ ३० डे घ्् ३९ |माक्षगमन ई& श2४ (९ प्रभाद पृष्ठ ३६ ९ ५शभु ६९ ५१५९ ई््‌ फ् १७ १५ छ्रै ७७ ८१ ८९ ८१ ८५ <द७छ ९२ ९8 १०% १०६ ११२ ११९५ १६१७ 1६१८ १२८ ४६ द्विताय पन-अपाय विचय चैतन्य और युद्ध ४८तुतीय पत्र विंपाफ विचय २ ८ १ करमे




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