विराटा की पद्मिनी | Virata Ki Padmini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.48 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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No Information available about सत्यदेव वर्मा बी.ए. - Satyadev Verma B.A.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विराटा की पद्िनी श्३
. ' इन शब्दों में जो प्रबलता थी, जो आदेश था, उसने कुज्जर को
कतंव्यारूढ़ कर दिया । तुरन्त दोनों ओर की खिची तलवारों के बीच
पहुंचकर बोला--'यहाँ पर नहीं किसी उपयुक्त स्थान पर ।'
'हुम सैयद की फौज के आदमी है । एक बोलाः--“कोई स्थान और
कोई भी समय हमारे लिये उपयुक्त है ।'
लोचनसिंह अप्रतिहत भाव से बोला--'सयद का बड़ा डर दिखे-
लाया । न सालूम कितने सँयदों को तो हम कच्चा गठक गये हैं।.
'और हमने न-मालूम तुम सरीखे कितने लुक्कों को तो चुटकी से
ही मसल दिया है ।' उनमें से एक ने चुनौती देते हुये कहा । -
'... उन दोनों पर लपका । कुज्जर अपने प्राणों की जरा भी
परवा न करके बीच में धँस गया ।
लोचन वार को रोककर खिसियाने हुये स्वर में बोलो--“कुंवर,
कुंवर बचो । लोचनसिंह की जलती हुई आग शत्र,-मित्र के अन्तर को
नहीं पहुचानती ।
_. कुमुद दो कदम आगे बढ़कर एक हाथ भाकाश की ओर जरा-सा
उठाकर बोला--“मत लड़ो; अपने-अपने घर जाओ । पुण्य-पर्व है,
लड़ेगा, दुःख पावेगा ।
दोनों मुसलमान संनिकों ने अपनी तलवार नीची कर ली । कवर
ने लोचनसिंह का हाथ पकड़ लिया । वे दोनों सिपाही एक टक कुमुद
की ओर देखने लगे, अतृप्त, अचल नेत्रों से, मानों अनन्त काल तक
देखते रहेंगे । .
कुज्जरसिंह ने हाथ के इशारे से भीड़ हटाने का प्रयत्न किया ।
कुमुद ने कुज्जर से कहा--राजकुमार, इनको यहाँ सें ले जाइये ।'
फिर मुसलमान सँतिकों से वोली--“बआप लोग यहाँ से जायें ।'
इतने में शोर--गुल सुनकर गाँव के कुछ आदमीं आं गये ।
मन्दिर पर मुसलमानों की उपस्थिति देखकर उन लोगो ने सैनिकों
पर झगड़े का सन्देह ही नहीं, चुप चाप विदवास भी कर लिया । कई कंठों
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