चीन - कल और आज | Chin-kal Aur Aaj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'चीनमें भारतका प्रथम राजदूत ९
( अब एलाट ) तथा मोरे दौरेट जैसे कतिपय अन्य यहूदी नेताओं-
से मेरा वर्षका मेचीपूणं सम्बन्ध था | फिर भी फिलस्तीनमे स्वतन्व
यहूदी राजके निर्माणक प्रद्नपर मेरी पूरी सहानुभूति जिओनिस्टों
( यहूदियोँ ) के साथ नहीं थी । अरबोंके प्रति भारतका दृष्टिकोण सदासे
मैचीपूर्ण रहा है । यहूदियोंके इस दावेसे, कि फिलस्तीनमें उनके लिए एक
राष्ट्रीय आवास होना चाहिये, सहानुभूति रखते हुए भी मेरे विचारसे
साम्प्रदायिक और धार्मिक ऐकान्तिकतापर आधृत उनकी एक ॒स्वतन्त
राज बनानेकी माँगिसे एक तो इस्लामी घर्मोन््मादके पुनरुजीवित हो जाने-
का खतरा था, दुसरे, यह मोग फिलस्तीनकै अरबोकी दष्टिसे मी अनुचित
और अन्यायपूर्णं थी । अतएव भारतीय प्रतिनिधिमण्डलकै हम सदस्यगण
एक ऐसा क्षेत्रीय सच् बनानेके पक्षम थे जिसमें यहूदी और अरब एक साथ
पडोसि्ोकी तरह रह सुकं । डाक्टर वीजमैन न्यूयाकंमें सबाय प्लाजा
होरे रहते थे । श्रीमती पण्डितवी सहमतिसे भै उनसे भारतीय इृष्टि-
कोणको स्पष्ट करनेके लिए कईं बार मिला । इसमे सन्देह नहीं कि वे मेरी
बातें बड़े पैर्यपूर्वक सुनते थे किन्तु, जब कोई ऐसा प्रश्न आ जाता था
जिसे वे एकान्त न्यायका प्रश्न मानतेयेतो फिर समी महान् पुरुषोकी
तरह वे भी उसपर टससे-मस नहीं होते थे | मैं अबतक जितने आदमियों से
मिल चुका हूँ उनमें वीजमैनकी गणना निस्सन्देह सर्वाधिक महत्त्वके
व्यक्तियोंमें होगी । उनकी उपस्थितिमें सुझे सम्ध्रम, समादर और बिनयकी
वैसी ही भावना हुई है जैसी महात्मा गांधीकी उपस्थितिमें होती थी ।
दोनोम वही उच्चतम आध्यात्मिक गुणथा जो उनके पास आनेवाले
लोगोपर स्वतः अपना प्रभाव डारु देता था | उनसे अरगोके अधिकार
ओर प्रस्तुत समस्याके भारतीय समाधानकी बुद्धिमन्तापर कोई विचार
अथवा बहस करना वस्ततः बिल्कुक व्यर्थ था किन्तु ऐसा करनेमें मैं
संकोच नहीं करता था क्योंकि मैं यह अनुभव करता था कि उनसे वार्ता
करना स्वयं एक गौरवकी बात है और यदि किसी भी बहानेसे इसका
मौका मिलता है तो चूकना नहीं चाहिये । फिर, इसे मामलेमें स्वयं बहाना
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