विश्व इतिहास की झलक दूसरा खण्ड | Vishv Itihas Ki Jhalak Khand 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
734
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कान्तिर्य, भर खासकर यूरो में १८४८ को क्राम्तियाँ ७०३
इस तरह यूरोप-मर में प्रगति-विरोध का बोलबाला था और जिस किसी
चीज़ भे उदारता की ज़रा भी झलक दिखाई देती थी वही बेदर्दी से कुचल दी
जाती थी। १८१५ ई० की वियेना-का्रेस के फंसलो के अनुसार कई राष्ट्रीय
इकाइयाँ मसलन इटली और पूर्वी यूरोप 'की, विदेशी शासन के अधीन रख दी
गई थी। उन्हे जोर-जबदंस्ती से दबाये रखना पडता था । लेकिन इस तरह की बातें
बहुत दिन तक नहीं चल सकती । आगे-पीछे झगडा होता ही है। यह ऐसी ही बात
है जेसे उबलती हुई पतीली के ढबकन को हाथ से दवाये रखने की कोदिश करना।
रोष मे भी उबाल भा रहा था और बार-बार उसकी भाप बाहर फट निकर्ती
थी । मैं किसी पिछले पत्र मे १८३० ई० के बलवों का ज़िक्र करते हुए बता चुका
हक उस समय रोप मे कई परिवर्तन हुए और खास तौर पर फ्रान्स में तो
बनो को हमेशा के किए निकार दिया गया । इन बक्वो ने बादशाहो, सभ्नारो
मौर उनके मन्वियो के दिक् ओर मी च्यादा दहला दिये और उन्होंने जनता पर
दमन ओर अत्याचार करने मे आर भी ज्यादा जोर खगा दिया।
इन् पत्रो के दौरान अक्सर हमारे सामने वे महान् परिवर्तन भी आये
है, जो देशो मे युद्धो गौर क्रान्तियो के सबव से हुए हैं । पुराने ज़माने के युद्ध कमी तो
मज़हवी गुड होते थे और कभी राजवदों के। अवसर ये युद्ध राजनीतिक हमले -
होते थे, जो एक राष्ट्रीय इकाई दूसरी पर किया करती थी। इन सब कारणों के
पीछे आमतौर पर कोई-न-कोई आिक कारण भी होता था। मसलन मध्य-एशि-
याई कबीरो ने यूरोप गौर एशिया पर जितने हमे किये, उनमे से उयादातर हमलों
की वजह यह थी कि भूख ने उन्हे परिविम की तरफ खदेड दिया था । आधिक
उक्षति भी कौमो या को ताकतवर बना देती है और उनकी हैसियत दूसरो
के ऊपर वना देती है। मैं तुग्हे बता चुका हूँ कि यूरोप में और दूसरी जगह भी
जिन्हे मज़हबी युद्ध कहा जाता था, उनकी तह मे भी आधिक कारण काम कर
रहे थे। जैसे-जैसे हम आधुनिक काल की तरफ आते हैं वैसे-वैसे हम मज़हबी और
राजवेशो के युद्धो को बन्द होता हमा पाते है। 1 बन्द नही होते ।
दुख की बात है कि वे ज्यादा हत्यारे हो जाते हैं। मगर अब इनके कारण साफ-साफ
राजनीतिक व आधिक हो जाते हैं। राजनीतिक कारणों का सम्बन्ध सबसे दयादा
राष्ट्रीयता से होता है, या तो एक राष्ट्र के हाथो दूसरे सष्ट्र का दबाया जाना या
दो सरगर्मं राष्ट्रीयता की आपमी टक्कर । यह टवकर भी ज़्यादातर आधिक
कारणों से होती हैं, मसलन जब आधुनिक उद्योगवादी देश कच्चे माल और बाज़ारो
की माँग करते है। इस तरह हम देखते हैं, युद्ध मे आधिक कारणो का महत्व बढता
जाता है मौर आज तो दर असक वे ही सवने जोरदार हैं।
क्रान्तियो मे भी पिछले दिनो इसी तरह के परिवर्तन हुए हैं। शुरू-धुरू
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