वैदिक काल से गुप्तकाल तक भारत में हिन्दू विवाह प्रथा | Vadic Kal Se Guptkal Tak Bharat May Hindu Vivah Pratha

Book Image : वैदिक काल से गुप्तकाल तक भारत में हिन्दू विवाह प्रथा  - Vadic Kal Se Guptkal Tak Bharat May Hindu Vivah Pratha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विवाह विषम :लिंगियों का वह सम्बन्ध है जिसे प्रथा या कानून द्वारा मान्यता प्राप्त होती है, तथा इस बन्धन में बन्धने वाले स्त्री पुरूषों के एक दूसरे के प्रति कुछ पारस्परिक अधिकार एवं कर्तव्य भी होते हू “हिन्दू विवाह की तुलना एक बाधा दौड़ से की जा सकती है। बाधा दौड़ का विजेता जिस प्रकार रास्ते की अनेक बाधाओं ,विषम स्थलों, गहरे गड्कों और ऊंचे ठीलों को पार कर अपने लक्ष्य स्थान पर पहुंचता है। उसी प्रकार हिन्दू कन्या के माता पिता पिण्ड, गोत्र जाति के कठोर .. प्रतिबन्धों का पालन करते हुये तथा अन्य अनेक दब्वाधाओं का सामना _ करते हुये बड़ी कठिनता से वर का चुनाव कर पाते हैं | है हिन्दुओं में विवाह प्रत्येक व्यक्ति. के लिये. आवश्यक संस्कार है। मोक्ष प्राप्ति हिन्दू के जीवन का अन्तिम लक्ष्य माना जाता 7 है। और इसकी प्राप्ति के लिये पुत्र-सन्तान का होना आवश्यक है। स्त्री का माँ बनना उसकी गरिमा और गौरव का प्रतीक है। पति और पत्नी ... में समायोजन और समता. का भाव होना चाहिये। इसी बात को स्पष्ट करते हुये मनुस्मृति में कहा गया है - के _ “'मातायें बनने के लिये स्त्रियों की उत्पत्ति हुयी और पिता बनने के लिये पुरूष की । इस लिये वेद आदेश देते हैं, कि पुरूष को समस्त ..... धार्मिक, नैतिक और सामाजिक कार्य पत्नी के साथ सम्पन्न करना चाहिये।” “हिन्दू विवाह में विशेष रूप से नैतिकता और अनुशासन को ..... प्रमाणिक माना गया है। अंग्रेजी निबन्धकार फांसिस बेकन के अनुसार - ““ पति हमेशा गम्भीर और सौम्य होना चाहिये ।”** विवाह के लिये संस्कृत साहित्य में अनेक शब्द प्रचलित हैं। जैसे _ उद्वाह, परिणय,उपयम और पाणिग्रहण आदि। उद्‌्वाह का अर्थ है वधू को उसके पिता के घर से ले जाना, परिणय का अर्थ है चारों ओर घूमना । अर्थात्‌ अग्नि की प्रदक्षिणा या परिक्रमा करना, उपयम का आर्थ .. है किसी को निकट लाकर अपना बनाना तथा पाणिग्रहण का अर्थ है. ...... वधू का हाथ ग्रहण करना (9) दर




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