पृथ्वी से अन्तरिक्ष तक | Prithvi Se Antariksh Tak

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Prithvi Se Antariksha Tak by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जह रात, जबकि विज्ञान-गल्प सत्य सिद्ध हुई 18 साटो मित्र-राष्ट्रों के अनुसंघानकर्ताश्ं के साथ किसी बात का आदान-प्रदान' “नहीं कर सकते थे और वे हमसे सहायता नहीं ले सकते थे इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत-कुछ मूल कार्ये भारी खच से दुबारा करना पड़ता और उसमें देरी होती । 1946 में प्रतिरक्षा विभाग ने दूरस्थ स्थानों से श्राक्रमण से सुरक्षा के 'लिए राकेट प्रक्षेपास्त्रों पर काम आरम्भ किया। यह काम युद्ध के समय सफल हुए अनेक छोटे अस्त्रों तथा जर्मनी से लाये गए वी-2 राकेटों पर आधारित था। तीन साल बाद इस प्रयत्न में कटौती की गई, जिससे खर्चे में कमी हो | यह प्रकट किया गया कि नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र भविष्य के लिए हैं और विमानों से अच्छी प्रतिरक्षा हो सकती है । जट वमवषंकं विमान पर सारा वोभ डाला गया। 1955 तक प्रक्षेपास्त्रों पर काम आरम्भ नहीं हुआ। लेकिन रूसियों के विचार कुछ भिन्‍नथे। युद्ध के बाद उन्होंने बड़े 'राकेटों का निर्माण आरम्भ किया और तभी से इस काम को जारी रखा। युद्ध के बादे अमरीका में विज्ञान की प्रगति में जो ह्वास आया, उसको रूसियों ने स्वर्ण भवसर समझा और इस कठिन नई कला में श्रपती सिद्धहस्तता - -विरव के सामने प्रकट करने का प्रयत्न किया । 1950 के बाद से परमाणु अस्त्र ही युद्ध में अंतिम अस्त्र मान लिये गए थे। लेकिन वे भारी थे । उनको प्रक्षेपास्त्रों में प्रयुक्त करने का मतलब খা, भारी और विशाल राकेटों का निर्माण, वी-2 से श्रनेक गुना बड़े, जबकि अब तक वी-2 ही विद्व के सबसे बड़े राकेट सममे जाते थे। उस समय 'सोवियत अधिकारियों ने ऐसे राकेट बनाने का निश्चय -किया था जिनकी 'घकेल शक्ति पाँच लाख पौंड या उससे अधिक हो और जो टनों परमाणु सामग्री उठाने की 'क्षमता रखते हों। अब रूसियों के पास ऐसा ही राकेट अस्त्रागार है । इसी आकार के कारण वे भारी उपग्रह अन्‍्तरिक्ष में फेंकने में सुमर्थ हो सके । इसी दौरान श्रमरीकी सैनिक नीति उस समय' तक बड़े प्रक्षेपास्त्र बनाने के पक्ष में नहीं थी, जब तक' कि तोपों तथा मामूली धंक्के की शवित से नियंत्रित भ्रक्षेपास्त्रों में प्रयुक्त होने वाले छोटे परमाणु बम न बन जाएँ। 'परमाणु शक्ति आयोग तथा सेना द्वारा किये गए अनुसंधान से यह समस्या




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