तुलसी-ग्रंथावली भाग 1 , खंड 1 | Tulsi-Granthawali Bhaag 1 , Khand 1

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Tulsi-Granthawali Bhaag 1 , Khand 1 by भाताप्रसाद गुप्त - Bhataprasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३ पाठ स्वीकृत किया गया है, क्योकि पूवं की स्थितियों का यद्‌ पाठ चतुथ शासाकी एक प्रति मे मिलता दै,ययपि उसकी सव से प्रमुख चौर प्राचीन प्रतियों (६) तथा (ल) में श्मानः पाठ मिलता है । यदि प्रथम स्थिति का स्वीकृत और द्वितीय और ठ्तीय स्थितियों का एकमात्र पाठ 'काम” चतु स्थित्ति की किसी भी प्रति में न मिलता, सो “मान' पाठ को इस दृष्टि से देखने को आवश्यकता होती कि वह्‌ पाट-संस्कार की भावना से कथि द्वारा प्रस्तुत किया गया तो नहीं है। ( ६) श्र (६ झा) एक ही मूल की श्रतिलिपियाँ है, 'इसलिए इन दोनो का प्रमास भी चस्तुतः एक ही प्रति का प्रमाण हो जाता है, रौर यह्‌ अनुमान किया जा सकता है कि भूल की भूल दोनों प्रतियों में रा सकती है. । इन पाठभेदों का कवि की विचारधारा, प्रसंग तथा कवि-प्रयोग श्यादि के श्रनुसार विवेचन मेरे 'रामचरिठमानसर का पाठः नामक उक्त अंथ में मिलेगा । इस अ्रसंग में इतना ही और कहने की 'आावश्यकता है कि प्रथम तीन शाखाओं के प्रायः समस्त स्थलों के पाठमेद पादटिप्पणी में दिए गए हैं, किंतु चतुथ का की (८) संख्यक प्रतियों के उन स्थलों पर के पाठभेद नदी दिए गए ह जिनके विषय में (६9६४) का पाठ अन्य शाखा के पाठ से श्रमिन्‍्न है, क्योंकि (८) संख्यक प्रतियाँ-- जिनमें राजापुर की भी प्रति है--वड़ी सावधानी के साथ लिखी गई है, श्रार--कदाचित्‌ राजञापुर की प्रति के श्रतिर्कि- सभी बहुत पीठे की मी 1 दसी प्रकार चतुय शाखा की क्रि प्रति में पादे जाने बाली ऐसी श्रतिरिक्त प्रंक्तियाँ भी नहीं दी गई हैं जो उस शाखा की ही झन्य भर्तियों में नहीं पाई जातीं-ऐसा पंक्तियाँ ( ८ ) संख्यक कुछ प्रतियों में तो हैं ही, (६) में भी कुछ कॉंडों में हैं, ्औौर स्पप्ट रूप से प्रक्प्त हैं । प्रयुक्त झक्षर-विन्यास के विपय में इतना ही कहना है:-- श--प्रतियो में *प” का प्रयोग भ्ठ, तथा “पः दोनो के स्थान पर्‌ किया गया है; दोनों को इस संस्करण मे अलग अलग कर दिया गया हूँ; ' २-मतियों में अजुस्वार के बिंदु का ही प्रयोग सानुनासिक के लिए भी हुआ है । संस्करण में शिरोरेखा के ऊपर लगने वाली मात्राओं के' साथ दी ऐसा हुआ है, श्रन्यथा रनुस्वार फे लिए विदु श्वौर सानुनासिक के लिए चंद्रविंढु रक्खा गया है। कि




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