गुणा गागर | Guan Gaghar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ = 1 -चु~ खल करक गुरुको कटे जी करि पेट की वत्ि। हो जाता है शिष्य बहु, आराधकः साक्षात॥ १) सद को जो वश में रखे उसके वश स्पार। कहुलापेगा वह मनुज वसुधा का शूगार 1! २॥! खद गरजी भरते कई, अपना घर हुरबार | मुनि कर्हैया' वे कभी, करे ने पर उपकार ॥ ३ ॥ खुश होते हैं भक्त जन, पाकर... सदुंगुद-योग। जसे चातक मेष का, षा करफे सयोगं ॥ ४॥ खुदक हृदय नर से नहीं, करना. मत्री पुत्र 1 1 जीवन म षह जानता नहीं प्रेम का सूत्र ॥५॥ खुगबू वाले फूल को, मिलता उत्तम स्यान। गुणवानों का हर जगह, होता है सम्मान ॥ ६॥ सुशयू अपनी छोडकर, जते पुरुध महाम । जगं ध्याता है भजे भी रामनाम का ध्यानं॥७॥ चद षौ गततो का जिह भान नही तिलमाश्र। “मुनि कहैया' थे नहीं बन सकते गुण-पात्र ॥ ८ ॥। ८] [ गुण गाम




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