काल गणना और पंचाग | Kaal Ganna Aur Panchag
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology, राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री सुखवीर सिंह गहलोत - Shri Sukhvir Singh Gahlot
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)12 [ भारतीय कालगणना श्रौर पचाग
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धृतव्रत (वरुण) 12 महिनो को जानता ह ्रौर वह् 12 सिनो सेलगे श्रघिमास को भी जानता है ।
ग्रधिमासो कौ गणना के नियम ग्न्य देशौो-- वावुल, युनान श्रादिमे भीवनेहूयेये। भ्रत प्राचीन
काल से ही भारत, युनान, रोम श्रादि मे चान्द्र सौर पचाग श्रपनाया गयाथा ।
अधिक भास श्रोर क्षय मास
सौर मास की गणना वाले वर्ष मे लगभग 365 दिन 6 घण्टे होते है लेकिन चान्ध मास वाने
वषे मे लगभग 354 दिन 9 घण्टे होते है. इस कारण कभी कभी किसी सौर मास में दो चास्द्र मास थ्रा
जाते है । , ऐसे दोनो मासो का नाम सौर मास वाला होगा लेकिन प्रथम चान्द्र मास ग्रचिमास व चाद
वाला शुद्ध या निज मास कहलाता है ।
ग्रधि मास को मलमास, सस, भ्रंहसस्पति, पुरूपोतम म।स श्रादि भी कहते हैं । मलमास कहलाने
का कारण इसे काल का मल समभना है। जब एक वर्ष में दो ्रघिमास हो. और एक क्षय मास हो तो
दोनों अधिमासी में प्रथम संसर्प कहा जाता है । यह मास विवाह को छोडकर श्रन्य घामिक कृत्यो के लिए
निन्य साना जाता है। अहसस्पति क्षय मास तक सीमित है। श्रह्सस्पति का शाध्दिक श्रथें है--'पाप
का स्वामी ) कुछ पुराणो मे अधिमास को पृरूपोत्तम मास कहा गया है। विष्णु को पुल्पोत्तम क्
जाता है। सम्भव है कि श्रघिमास की निन्द्यता को कम करने के लिये इसे यह नाम दिया गया हों ।
जिस मास मे दो सक्रातियां होती है ग्रौर जिसमे चन्द्रोदय नही होता टै वहु माम क्षय मास
कहलाता है। क्षय मास के पूर्व तथा वाद के 6 महिनो मे श्रघिमास श्रवश्य होता है । क्षय मास वमी
141 चर्प मे तो कभी 19 वर्ष में भी पड़ जाता हे ।
श्रघिमास सभी चन्द्रमासो में, सिवाय पोप व माघ के, हो सकते हैं लेकिन क्षय मास मारगंशीर्ष,
पोप व माघ मे ही हो सकते है ।
राशि व संक्रान्ति
श्राकाण मे सूर्य तारो के वीच दर्थं वत्ताकार जिस मार्ग से परिक्रमा करता है वह श्रातिवृत्त
कहलाता है , प्राकाणमे सूर्य का पथ बिल्कुल निश्चित है लेकिन चन्द्रमा व ग्र्य ग्रह इस क्रातिवृत्त से
9 श्रण उत्तर श्र 9 श्रंश दक्षिण तक ठट जाति है 1 श्रततः करातिवृत्त से 9 अंश उत्तर श्रौर 9 श्रश दक्षिण
तक की एक श्रण्टाकार मेखला (वेल्ट) को कल्पना ज्योतिपियों द्वारा की गई है जो राशिचक्र व हुनाता
है। इस मेखला का चक्र 30-30 अणों के 12 भायों मे बाटा गया है । प्रत्येक 30 शरण का भाग राशि
कहलाता है । जब सूर्य एक राशि श्रर्थाव् क्रांतिवृत के 30 श्रंण की परिक्रमा ममाप्न कर दूसरी यनि
मे प्रवेश करता है तब मसंक्राति कहलाती है। जहा क्रंतिमण्ठन श्रीर विषुवदवृत मिलने हैं वह राशि उसमें
के तारा नमृह के नाम से मेय कहलाती है 1 इसवे वाद में निम्न राशिया त्रमानुमार श्राती ह--द्पमः
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rakesh jain
at 2020-12-01 09:54:59