दशधर्मविशदविवेचनम | Dashadharmavishad Vivechanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
333
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य श्री अजितसागर - Acharya Shri Ajitasagar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(जघमेविवेचनम् = गष मय लू पल कप न 7
पीतिम उत्तमक्षमाधमं: {1
स^ के हि के * ~ ५१७ ~, ४ दि ५ ऋ
मोदेन दुवेचः सोडिन्यम् । शेवा कष्विववो प कुधी सपु तडयति
कदा साधुना रिते इति चिन्तनीयं, भयं कुषी माँ हन्त्येव भज्जसा
मल्नासैीन् तु जं हरति, भ्रक्षयाद् मेऽस्माल्लोभ एव जातो नं
हानिं असा 1 वाऽत्राय वधबन्धाद्यै मे पापं हश्ति स्फुटं भरतं
वै हनि स्तु भ्रस्येव ममं तु उज्जिता वृद्धिः! श्रथवीा पभरार्भवे
योऽयं पुरुषस्ताडितंस्तसोध्यं मा ताडयति, श्रस्थ कश्चिदू
दषो म । था प्राग्भये मया येत् कृते तन्मयेव भुज्यते । तथा चोक्त
प्राड मया यत् कृत क्म, तन्मयैवोपेभुज्यते 1
मन्ये निमित्तमाकोऽ्यः+ सूखदुःखोदचतो जनः ।१३०।।
स्वयं कृत कमं यदहमन, पुरा, फल तदीय लते शुभ शुर ।
परेणा दत्तं यदि लभ्यते स्फुट, स्वय कृतं कम निरथक तदा। ३१।
राम् वाऽस्मिन्'वा विराध्यन्निममहमनुषः, किल्विषं यद् बबन्ध,
कूरं सेत्पारतेष्वद् घ् कमयेमेशुन, मां शपन् कर्मिमाल्नेन् ।
निश्तनू, वा केन, बाय, 0 कष य, - न
भोक्त मेऽद्यैव योष्य, तदिति वित्ः ५. सरवंथाभयेस््वितिक्षाम् ॥३२।
भ्रम दुः्खीविकर्रिक निभिर्तमोत्र मन्यें, चेनू' मंदोयमपि चिर
कोसि रतु तथास्य विदों में की विशेष
है वा फालोएनर कक्थकीक न 1 कान्य ए
श्वि प्रतिमया, भित्वा ष्रि शकैः ८ नार
'परवगिःःक्दां उख्यस्य कशा मे कानी । दरी? 7
बहू कॉ्ई्लाइलाक्रस्से पुमीसे 'मिर्विवोकसु जेखमस्तोहि गररी-
स्पस्तसमसावस्य कि फबमत: सांप्रतं क्रोधविषं पियामि ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...