जीवनसाहित्य | Jeewan-Sahitya

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
6 MB
                  कुल पष्ठ :  
193
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० -कौकम  सहित्य
दुणुःखका कलेवर भक्ते ही सुन्दर हो, श्चुसकी पोशाक भले ही
, अरविश्ित हो, श्युतमे भरसे बह कम घातक स्मबित नहीं होता;
बल्कि वह ज्यादा खतरनाक हो जाता है । -
श्रपनी समाज-न्यवस्थाकी सुन्दरताका हम चाहे जिना
बखान करे', मगर अुसमें अराज श्रक तुटि स्पष्ट व देती
है। अेक जमाना था जब हम सब संस्कृतमें ही लिखते थे ।
. छिसलिये हमारे प्रौड घौर ललित विचार सामान्य समाजके
लिये दुष्माप्य ये । लेकिन श्रुस वक्त संत-कवि 'और कथा-कीतेन-
कार वह् सारा कीमती माल श्रपनी शक्ति के श्रनुसार स्वभाषाकी
फुटकर दुकानोंमें सस्ते दाम बेचते थे । मुगल-कालमें अुदू की
प्रतिष्ठा बढ़ी और श्ररवी, फारसी भाषाश्रसे कविवोँको प्रेरणा
भिलने लगी । 'ंप्रेजी जमाना शुरू हुआ और अपनी सारी
मानसिक खराक शरंभजीसे लेनेकी हमें श्रादत पड़ गयी । श्चुसका
अच्छा ओौर बुरा दोनों तरहका असर हमारी मनोरचनापर पड़ा
है; साहित्यपर तो पड़ा दी है । ्राजकलके हमारे अखबार श्नौर
मासिकपत्रिकाओं नये जमानेके विचार फुटकर भावसे बेचनेका
काम करने लगी हैं । लेकिन झिन तीनों. युगोंमें गरीब श्रेखीके
ललोगोंकि लिये, देहातियों और मजदूरोंके लिये, स्त्रियों और बालकों-
के लिये विशेष प्रयास नहीं हुआ है। शिक्षित समाजमें भी
झुनका सामाजिक प्राण बहुत कुछ साहित्यका निर्माण करता
है । हमारे संस्कारी देशमें साघुसन्तोंकी कृपासे भ्रुसमें कुछ बृद्धि
. इ्ची हो तो भिससे आश्चयोन्वित होनेका कोश्ची कारण नहीं ।
लेकिन ज्यादातर मध्यम भणी ही बिचार हम हमेशा करते
आये हैं । हम यह भूल गये हँ कि गरीव लोगोंका जोवन सन्तेष-
मय, भागामय आर संस्कारमय करना हमारा धार्मिक कर्तव्य
है।-कुछं छिनीगिनी कददानियोंक़ो छोड़ दें तो हमारी कहानियों
भौर श्ुपन्यासोंमें गरीबोंके करूप 'काव्यमय जीवनका विचार
					
					
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