हंस | Hans Vol Iii (1943)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
76 MB
कुल पष्ठ :
721
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हंस | १७२ [ विष्णु
है, सङ्गीनो से उनका सामना करती है, श्रपनी फौज के घायलों को उठा लाती हैं, दुश्मन के मेद ले
लेती हैं श्रौर न जाने क्या-क्या, . ८ ,..
सप रे ! कितनी बहाहुर नारियाँ हैं वे--रानी एक दम सिहर उठी ।
“हैं। श्राप तो कया करेंगी श्रपने पयषों
कू! मा घर से सह नह म 1...
उसे याद श्राया --ठीक तो हैं, पड़ोस के लाला रामनाथ का लड़का बहुत बड़े श्रोहदे पर
लड़ाई में जा रद्दा था, परन्तु माँ ने नहीं जाने दिया । बोली- जाने से पहले मुभे जद्दर देता जा
कि माँ ने चक्की रोककर फिर पुकारा--श्ररी रानी | कया कर रही है तू । झाग नहीं जली झभी तक ।
एक दम कपिकर बोली--जली है माँ ।
श्ौर फिर जल्दी-जन्दी राख पोंछ, पोता लगा, लकड़ी पर मिट्टी का तेल डाक दियासलाई
दिखा दी किश्राग भड़क उठी। माँ फिर चिल्लाई--मह्टी का तेल डाला दिक्खे । तेरा तो
रानी दिभारा फिर गया है । एक बोतल तेल के लिये प्राण गिरवी रखने पढ़ते हैं श्रोर तू है कि
नबाबज़ादी की तरह ढुलाये जा रही है. .....।
` कि तमी बाहर से दातुन चबाते-चबाते गृहस्वामी देवदत्त श्रा गये, बोले--क्या हुश्रा !
श्रे-शवेरे कयां शोर मचाया है ।
पी बोली--हुश्रा कया ! बेटी का नाम रानी क्ष्या रक्खा स्वभाव भी रानियो काला
शे चला है।
तब तो बड़ी श्रच्छी बात हे--ग्रद-स्वामी बोले ।
बात तो तब बढ़ी अच्छी है जब घर में राज भी हो ।
श्र तुमने क्या समझा है रानी किसी प्रक्रीर के षर जायगी । श्ररे पश्डितजी मे कहा था
नहीं कि लड़की रानी बनेगी । तमी तुमने इसका नाम रानी रखा था |
पकी का दिल पीढ़ा से घनीभूत दो श्राया, बोली--तब की बात श्रौर थी, श्ाज तो पेट भरना `
भी कठिन हो रहा दे । ऊपर से यइ लड़ाई झा गइ, न जाने कब तक चलेगी। यही दक्ष रद्द तो
माँगे भीख भी न मिलेगी ।
ग्ह-स्वामी का स्वर भी गिरा, कहा--भीख झ्ाज ही कौन मिलती है । श्रान भी इस देश में
इज्ञारों श्रादमी रोज़ सड़कों पर तड़प-तड़पकर जान दे देते हैं
रानी ने तब पकारा--माँ ! शाग जल रही हे ।
माँ ने सुना नही । वह पति से बोज्ञी--मगबान् की माया कौन जने, श्रपना-श्रपना भाग्य है ।
गरह-स्वामी मे कहा--हाँ जी श्रपने-श्रपने भाग्य की बात हे। कौन जाने रानी का
माग्य कैसा है !
अच्छा ही है--माँ बोशी ।
झच्छा हो चाहिये---द-स्वामी ने कहा--नहीं ठो कलकतते में ऐसी-ऐसी लड़कियाँ रुपये
रुपये में वेश्यायें स़रीद ले जाती हैं ।
कया हन-पत्नी जैसे कॉप उठी । ^
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