हंस | Hans Vol Iii (1943)

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हंस  - Hans Vol Iii (1943)

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

Add Infomation AboutRahul Sankrityayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हंस | १७२ [ विष्णु है, सङ्गीनो से उनका सामना करती है, श्रपनी फौज के घायलों को उठा लाती हैं, दुश्मन के मेद ले लेती हैं श्रौर न जाने क्या-क्या, . ८ ,.. सप रे ! कितनी बहाहुर नारियाँ हैं वे--रानी एक दम सिहर उठी । “हैं। श्राप तो कया करेंगी श्रपने पयषों कू! मा घर से सह नह म 1... उसे याद श्राया --ठीक तो हैं, पड़ोस के लाला रामनाथ का लड़का बहुत बड़े श्रोहदे पर लड़ाई में जा रद्दा था, परन्तु माँ ने नहीं जाने दिया । बोली- जाने से पहले मुभे जद्दर देता जा कि माँ ने चक्की रोककर फिर पुकारा--श्ररी रानी | कया कर रही है तू । झाग नहीं जली झभी तक । एक दम कपिकर बोली--जली है माँ । श्ौर फिर जल्दी-जन्दी राख पोंछ, पोता लगा, लकड़ी पर मिट्टी का तेल डाक दियासलाई दिखा दी किश्राग भड़क उठी। माँ फिर चिल्लाई--मह्टी का तेल डाला दिक्खे । तेरा तो रानी दिभारा फिर गया है । एक बोतल तेल के लिये प्राण गिरवी रखने पढ़ते हैं श्रोर तू है कि नबाबज़ादी की तरह ढुलाये जा रही है. .....। ` कि तमी बाहर से दातुन चबाते-चबाते गृहस्वामी देवदत्त श्रा गये, बोले--क्या हुश्रा ! श्रे-शवेरे कयां शोर मचाया है । पी बोली--हुश्रा कया ! बेटी का नाम रानी क्ष्या रक्खा स्वभाव भी रानियो काला शे चला है। तब तो बड़ी श्रच्छी बात हे--ग्रद-स्वामी बोले । बात तो तब बढ़ी अच्छी है जब घर में राज भी हो । श्र तुमने क्या समझा है रानी किसी प्रक्रीर के षर जायगी । श्ररे पश्डितजी मे कहा था नहीं कि लड़की रानी बनेगी । तमी तुमने इसका नाम रानी रखा था | पकी का दिल पीढ़ा से घनीभूत दो श्राया, बोली--तब की बात श्रौर थी, श्ाज तो पेट भरना ` भी कठिन हो रहा दे । ऊपर से यइ लड़ाई झा गइ, न जाने कब तक चलेगी। यही दक्ष रद्द तो माँगे भीख भी न मिलेगी । ग्ह-स्वामी का स्वर भी गिरा, कहा--भीख झ्ाज ही कौन मिलती है । श्रान भी इस देश में इज्ञारों श्रादमी रोज़ सड़कों पर तड़प-तड़पकर जान दे देते हैं रानी ने तब पकारा--माँ ! शाग जल रही हे । माँ ने सुना नही । वह पति से बोज्ञी--मगबान्‌ की माया कौन जने, श्रपना-श्रपना भाग्य है । गरह-स्वामी मे कहा--हाँ जी श्रपने-श्रपने भाग्य की बात हे। कौन जाने रानी का माग्य कैसा है ! अच्छा ही है--माँ बोशी । झच्छा हो चाहिये---द-स्वामी ने कहा--नहीं ठो कलकतते में ऐसी-ऐसी लड़कियाँ रुपये रुपये में वेश्यायें स़रीद ले जाती हैं । कया हन-पत्नी जैसे कॉप उठी । ^




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now