मूक माटी | Mook Maati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
514
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जा
साहसिक, साथंक और आधुनिक परिदृश्य के अनुकूल है । यह खण्ड अपने आप
में एक खण्ड-काव्य है । यह पूरा-का-पूरा उद्धत करने योग्य है । कठिनाई यह
है कि थोड़े से उद्धरण देना कृति के प्रति न्याय नहीं । जो छूटा है वह अपेक्षाकृत
विशाल है, महत्त्वपूर्ण है । अस्तु । देखें कथा प्रसंग को :
स्व्णकलश उद्विग्त भर उत्तप्त है कि कथानायक ने उसकी उपेक्षा करके
मिट्टी के घड़े को आदर क्यो दिया है । इस अपमान का बदला लेने के लिए
स्वर्णंकलश एक आतंकवादी दल आहूत करता है जो सक्रिय होकर परिवारमे
ब्राहि-त्राहि मचा देता है । उसके क्या कारनामे हैं, किन विपत्तियो मे से सेठ
अपने परिवार की रक्षा स्वय और सहयोगी प्राकृतिक शक्तियों तथा मनुष्येतर
प्राणियो--गजदल ओर नाग-नागनियो--की सहायता से कर पाता, मंक्षघार
मे दूबती नावसे किम प्रकार सबकी प्राण रक्षा होती है, किस प्रकार सेठ का
क्षमाभाव आतंकवादियों का हृदय परिवर्तन करता है, इस सबका विवरण
उपन्यास से कम रोचक नही । कविता का रसास्वाद तो भरपुर है ही । हम
मानें तो मान सकते हैँ कि ^स्वर्णंकलश' ओर आतकवाद भाज के जीवन के ताजे
सन्दर्भ हैं । समाधान भाज के प्रसगो के अनुरूप आधुनिक समाज-व्यवस्था के
विष्लेषण द्वारा प्रस्तुत किया गया है । सीघे-सपाट ढंग से नही, काव्य की लक्षणा
और ब्यंजना पद्धति से ।
विचित्र बात यह है कि सामाजिक दायित्व-बोध हमे प्राप्त होता है एक
मच्छर के माध्यम से :
खेद है कि लोभोी पापी मानव
पाणिग्रहण को भी
ग्राण-प्रहण का रूप देते हैं ।***
प्राय. अनुचित रूप से
सेवकों से सेवा लेते, और
वतन का वितरण भो अनुचित ही !
ये अपने को बताते मनु को सन्तान--
महामना मानवं !
देने का नाम सुनते ही
इनके उदार हाथों में
पक्षाघात के लक्षण दिखने लगते हैं
फिर भी, एकाध बंद के रुप में
जो कुछ दिया जाता, या देना पड़ता
बहु दुर्भावना के साथ हो ।
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