पउमचरिउ वॉ २ (१९५८) एसी ५५१३ | Paumchhriu Vol 2 (1958)ac 5513
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पद्मचरित
अयोध्याकाण्ड
इकीसवीं सन्धि
[ १ ] ण्क दिन विभोपणने सागरवुद्धि भट्टारकसे पूछा कि
“जयलद॒मीके प्रिय, रावणकी विजयः, जीवन ओर गाञ्य, कितने
समय तक अविचल रहेगा ।” तब उन्होंने कहा-“'सुनो; में बताता हु
अयोध्याके रघुबंशमें दशरथ नामका मुख्य राजा होगा; उसके दो
पुत्र घुरंघर घलुधोरी, बासुदेव और ब्रढदेव होगे, राजा जनककी
कन्याको लेकर; होनेवाले महायुद्धमें रावण उनके द्वारा मारा
जायगा” । यह सुनकर विभीपण एकदम उत्तेजित हो उठा मानो
'पीका घड़ा आगमें पड़ गया हो । उसने कहा--“लंकाकी बेल न
सूखे और रावणका मरण न हो; इसछिए क्यों न मैं, भयभीषण
दशरथ ओर जनकके सिरोको तुड़वा दूँ” । यह जानकर
कलहकारी नारद वधमान नगर पहुँचा । उसने दशरथ और
जनकसे कहा कि आज विभीषण आयगा और तुम दोनोंके सिर
तोड़ देगा । तब; वे दोनों अपनी लेपमयी मूर्ति स्थापित करवा कर
बहाँसे चल दिये । बिद्याघर आये और उन्हीं लेपमयी मूर्तियोंके
सिर काटकर ले गये ॥ १-१० ॥
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